Banyan Tree in Hindi – बरगद का महत्व

Banyan Tree in Hindi – के इस आर्टिकल में बरगद के पेड़ का महत्व, बरगद का उपयोग, बरगद का धार्मिक महत्व, देश के बड़े बरगद पेड़ की जानकारी यहाँ उपलब्ध है। आशा ये आपको पसंद आएगी।


The Banyan Tree in Hindi – बरगद एक विशाल वटवृक्ष

 

Banayan Tree In HindiThe Banyan Tree in Hindi 

बनयान ट्री (bargad ka Pedh)को हिंदी में बरगद कहते है। एक ऐसा वट वृक्ष जिसकी छाया गरमी के दिनों में प्राणवायु के सामान है। सूर्य से निकल ने वाली धारदार किरणों को अपने पर लेता है। और उसके निचे खड़े रहने वालो के लिए एक ढाल बन जाता है। गर्म धुप से बचाता है ओर हदय को सुकून देने वाली छत्रछाया प्रदान करता है।

एक ऐसा वृक्ष जिसके मूल से लेके पत्ते तक लाभदायी है।  जिस वृक्ष का धार्मिक महत्व अपरंपार है। कही सारे रोग दूर करने के लिए इलाज के रूप में इसका उपयोग होता है।  मानव जीवन को पीड़ा मुक्त करने के लिए, बीमारिया दूर करने के लिए औषधि या जड़ीबूटी के तोर पे इसका इस्तेमाल होता है।

हमारे देश में शायद ही कोई गांव होगा जहां बरगड़ का पेड़ नहीं होगा। और वो भी ज्यादातर ऐसी जगह पर जो गांव की मुख्य जगह कही जाती है। जैसे की बस स्टेशन,स्कूल या गांव का चौराहा या मंदिर के आंगन में ये पेड़ जरूर मिलेगा।

ज्यादातर ग्राम पंचायत की सभा बरगद की पेड़ (bargad Tree) की छत्रछाया में ही होती है।

बरगद का पेड़ दुनिया के सबसे बड़े पेड़ो में से एक है। हम ये कह सकते है की बरगद सबसे बड़े पेड़ो का प्रतिनिधित्व करता है।

बरगद (Banyan tree)  हमारे देश का राष्ट्रीय वृक्ष है। भारत के आज़ाद होने के बाद सन 1950 में बरगद को राष्ट्रीय वृक्ष घोषित किया गया था।

बरगद के पेड़ भारत वर्ष के अलावा, पाकिस्तान बांग्लादेश जैसे देशो में भी पाये जाते है।

Banayan Tree को हिंदी में बरगद कहते है। अलग-अलग राज्यों में अपनी क्षेत्रीय भाषा के अनुसार उनके अलग-अलग नाम है।

 

बरगद के पेड़ की खासियत –

बरगद (Banayan Tree) एक विशालकाय और घटादार वृक्ष होता है।

थड (तना) सीधा और कठोर होता है। बरगद की ये विशेषता है की उसकी शाखा से जड़े निकल कर निचे की तरफ आती है। ये जड़े जमीन में चली जाती है और पतली जड़ समय बिताते एक थड का रूप ले लेती है।

बरगद के चोदे पत्ते, लाल रंग का फल और फल में बहुत छोटे से बीज होते है। उसके अंडाकार पत्ते, कलिकाये और लाल रंग का फल तोड़ने से सफ़ेद दूध जैसा रस निकलता है। बरगद की छाल, जड़, पत्ते, फल सब कुछ मानव जीवन के लिए उपयोगी है।

अकाल के समय में भी बरगद अड़ीखम रहता है। इसीलिए अकाल के समय में इसके पत्ते और फल के उपयोग से कठिन समय पसार कर सकते है ।

बचपन में स्कूल जाते वक्त बरगद की कुली पत्तिया सायद सबने खायी होगी।

 

भारत में सबसे बड़ा बरगद का पेड़ – Big Banayan Tree

माना जाता है की भारतवर्ष में सबसे बड़ा बरगद का पेड़ पश्चिम बंगाल में है। शिवपुर हावड़ा में स्थित बॉटनिकल गार्डन बरगद के पेड़ के लिए जाना जाता है। हम अक्षर जंगल में बड़े बड़े पेड़ देखते है। पर कहा जाता है की ये पेड़ खुद में एक जंगल की तरह है।

बरगद के पेड़ की ये विशेषता की बजह से इसे The Grate Banyan Tree के नाम से जाना जाता है।

The Great Banyan Tree  ग्रेनीज़ बुक ऑफ़ वल्ड में  दुनिया के सबसे चौड़ा पेड़ के तोर पर उसका नाम दर्ज है।

लगभग चौदा हज़ार पाँचसौ वर्ग मीटर में फैला हुआ ये पेड़ अपने आप में एक जंगल की तरह दीखता है।

लगभग  250 साल से ज्यादा इसकी उम्र है। तीन हज़ार से ज्यादा उनकी जटाये है। जो जमीन में जाके एक वटवृक्ष की तरह अपनी जड़े जमा चुकी है। किसीको ये पता ही नहीं चलता की उसकी मुख्य जड़ कोनसी है और शाखा कोनसी है।

 

बरगद का धार्मिक महत्व – पवित्र पेड़ 

भारतीय संस्कृति प्रकृति का पुंजन करती है। नदी को माता मानती है। वृक्ष में वासुदेव का दर्शन करती है। गाय को माता मान के उनका पूजन करते है।

धरती पे पाव रखने से पहले उसे कृतज्ञता पूर्वक उसे प्रणाम किया जाता है।

ऐसी महान हमारी संस्कृति में बरगद भी एक पुंजनीय वृक्ष है।

वैसे पुराणिक आधार पे वट वृक्ष को भगवान शिव का प्रतिरुप मानते है।

 

वटस्य पत्रस्य पुटे सयानम।

बाल मुकुन्दं मनसास्मरारी।।

ये स्लोक बताता है की वट वृक्ष के पत्ते पर भगवान श्री कृष्ण का बाल स्वरूप सोया हुआ है। और ऐसी तस्वीर  हमने कही जगह देखि है।

सांस्कृतिक नजरिये से देखे तो हमारे त्योहारों में भी बरगद का महत्व है। एक ऐसा भी त्यौहार है जो वट वृक्ष को आधार मानके मनाया जाता है। त्यौहार का नाम है व्रत सावित्री।

 

व्रत सावित्री में बरगद का महत्व 

व्रत सावित्री के दिन हिन्दू धर्म में मानने वाली सुहागन महिला व्रत सावित्री का पर्वे मनाती है।

इस व्रत में महिलाये सोलह सिंगर करके अपने पति के दीघायुष्य के लिए वट वृक्ष की पूजा अर्चना करती है।

वट वृक्ष ( Bargad ka pedh) को अक्षय वृक्ष भी कहा जाता है। अक्षय याने जिसका क्षय नहीं होता वो। अक्षय वृक्ष का आयुष्य बहुत लम्बा होता है। इस वृक्ष की आराधना करने से सुहागन महिला अपने पति के लम्बे आयुष्य की कामना करती है।

व्रत सावित्री के व्रत के दरम्यान महिला ये अबिल, गुलाल, कुमकुम और पुष्प से बरगद के पेड़ की पूजा करती है। धागा को थड के साथ बांध के पेड़ की प्रदक्षिणा करती है। और अपनी मनोकामना पूर्ण करती है।

 

प्रयागराज का अक्षयवट

 प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पे करीबन पांच सदियों से अड़ीखम खड़ा है अक्षयवट का ये वृक्ष। मान्यता है की भगवन राम और सीता वनवास जाते वक्त इसी वृक्ष के निचे उन्होंने रात बिताई थी। और जाते वक्त भगवान रामने अक्षय रहने का आशीर्वाद दिया था।

अक्षयवट के साथ ही पाताल पूरी मंदिर है, जिसमे 44 देवी देवता ओ की मुर्तिया है। पर इसका दर्शन कुम्भ मेले  दौरान  कर पाते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी पाबंधी हटा दी है। अब कोई भी कभी भी इसका दर्शन कर सकते है।

प्रयागराज  त्रिवेणी संगम में  स्नान करने के बाद अब कोई भी अक्षयवट का भी दर्शन कर सकेगा।

लोगो की मान्यता अनुशार इस अक्षयवट का दशन से सभी मन्नते पूरी होती है। इसका स्पर्श करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

अक्षयवट के चारो तरफ बने किले  मुग़ल बादशाह अकबर ने बनवाया था। ओरंगजेब और जहांगीर के समय में इस अक्षयवट को नस्ट करने की काफी कोशिश की। पर हर बार कूपले फूटने लगी और ये वृक्ष अड़ीखम रहा।

 

पुराणों में मुख्य चार वट वृक्ष का जीकर है

 

1 – गृद्ध वट उत्तरप्रदेश के कासगंज जिले में शूकरक्षेत्र में है।

2 – सिद्धवट मध्यप्रदेश के उज्जैन में है।

3 – वंशी वट भगवान श्री कृष्ण की नगरी वृन्दावन में है।

4 – अक्षयवट प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पे है।

  

कबीरवड भरुच – Kabirvad

नर्मदा नदी के पावन तट पर कबीरवड (Bargad ka Pedh) है। गुजरात के भरुच डिस्ट्रिक्ट में शुक्लीतीर्थ धाम है। नजदीक में नर्मदा नदी के किनारे मंगलेश्वर नामका एक गांव है।

कबीरवड जाने के लिए नर्मदा नदी को क्रॉस करना पड़ता है। मंगलेश्वर के इस किनारे पे शिव मंदिर है। यहाँ से  नाव चलती है, और पवित्र नर्मदा के सामने के किनारे कबीरवड पहोचाती है।

कबीरवड एक बरगद का पेड़ है। इसका नाम कबीरवड रखने के पीछे भी एक रोचक कहानी है।

कबीरवड का इतिहास 

सन 1400 सताब्दी में मंगलेश्वर में दो भ्राह्मण भाई रहते थे। उन्होंने यहाँ बरगद के बड़े पेड़ होने की आशा से छोड़ लगाया था। वो दोनों पानी सींचते गए समय बीतता गया पर बरगद के छोड़ में किसी प्रकार की वृद्धि नहीं होती थी।

ऐसे समय में पता चलता है की देश में काशी नगरी में एक संतकवि रहते है। उनसे मिलने गांव के कुछ भ्रह्माण काशी नगरी में पहोचते है।

संत का दर्शन करने के बाद उन्हें ये अहसास हुआ की ये संत हमारे भ्राह्मण बंधू की इच्छा पूरी कर सकते है।

ये भ्रह्माणो ने संत को पूरी कहानी सुनाई और अपने पावन चरण मंगलेश्वर की भूमि पे रखने का न्योता दिया।

संतकबीर कुछ ही समय में मंगलेश्वर आते है। नर्मदा के तट पर उस जगह जाते है, जहा बरगद का छोड़ लगाया था। सभी भ्रह्माण उनका स्वागत करते है। नर्मदा के निर्मल जल से उनके चरण धोते है, और चरणामृत का प्रसाद लेते है। बाकि बचा जल उस बरगद के छोड़ को (सींचा)पिलाया।

कुछ ही देर में सबके सामने चमत्कार हुआ। बरगद का छोड़ खिलने लगा। कूपन निकल ने लगी। यह देख कर सब आश्चर्य चकित हो गए।

सभी भक्त गण संतकबीर के चरणों में वंदन करते है। उनके शिष्य बन जाते है और उन्हें अपने गुरु  तोर पे स्वीकार करते है।

संत कबीर अपने भक्तो के साथ कही सालो तक वहा रहते है। उस दौरान एक छोटा सा छोड़ बड़े पेड़ का रूप ले लेता है।

आज इस बड़गड़ का पेड़ कबीरवड के नाम से जाना जाता है। यहाँ कबीर साहब का भव्य मंदिर बनाया गया है। कबीर साहब को मानने वाले उनके शिष्य अनेक जगह मौजूद है।

संत कबीर के चमत्कार के कारण यह बरगद का पेड़ है। इसीलिए इसे कबीरवड के  नाम से जाना जाता है।

कबीरवड करीब 3 किलोमीटर की त्रिज्या में फैला हुआ है। वडवाई की निकली हुई जड़े ने हर जगह थड बना लिया है।

आज कबीरवड का असल थड कोनसा है ये पता ही नहीं चलता है। इसकी छत्र छाया धुप तो रोक देती है। और एक रमणीय दृश्य का माहौल बना रहता है।

ये एक प्रवासन स्थळ के तोर पे भी विकसित हो रहा है। सैलानी यहाँ गुमने आते है। नर्मदा के पवित्र जल से स्नान करते है। नौका विहार करते है। कबीर साहब के दर्शन करते है और अलौकित दृश्य का लुप्त उठाते है।

यहाँ प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमा दिन से पांच दिन तक मेला होता है। आस पास के गांव के लोग ये मेले को एक उत्सव की तरह मनाते है।

 

Benefit of Banyan Tree – बरगद का औषधि के तोर पर उपयोग 

बरगद का पेड़ एक उत्तम जडीबुट्टी की तरह काम करता है। कही बीमारियों का इलाज के लिए ये उत्तम औषधि के तोर पे काम करता है। यहाँ ( bargad ke pedh ke Labh)

1 – खांसी और ज़ुकाम दूर हो सकता है। बरगद के लाल पत्ते का चूर्ण बनाके सुबह साम गरम करके लेने से खांसी शर्दी से राहत मिल सकती है।

2 – बरगद बालो की समस्या को दूर करता है। बाल ज्यादा झरना, लम्बे नहीं होना, ऐसी समस्या में बरगद के पत्ते का भस्म बना ले और नारियल के तेल के साथ मिक्स करके उसकी पेस्ट सर में लगा दे ऐसा  करने से बालो की सभी समस्या दूर होती है।

Banyan Tree

Banyan Tree in hindi

Banyan Tree in Hindi

3 – दांतो में दर्द है तो वहा बरगद के दूध जैसा प्रवाही वहा लगाने से दर्द कम होता है । बरगद की छाल से चूर्ण बनता है। इस चूर्ण से दंत मंजन होता है। दंत की सफाई होती है और मुँह से दुर्गन्ध दूर होती है।

4 – बरगद चेहरे का नूर बढ़ा देता है। बरगद के कोमल पत्ते की पेस्ट करके मुँह पे लगते है तो चेहरे में चमक दिखती है। मुहासे दूर होते है।

5 – बरगद के फल ( Bargad ke Fal ) से डायबिटीस में लाभ होता है। बरगद के फल का चूर्ण बनाये और गरम पानी में पकाये बाद में उसे छान के पिये। ये एक महीना करने से मधुमेह की बीमारी के लिए बहुत फायदेमंद है।

6 – शरीर पे किसी जगह घाव या सूजन हो तो ये बरगद पे पत्ते से ठीक हो सकते है। नमक और हल्दी को गरम करके बरगद के पत्ते पर रखे और सूजन वाली जगह पे पत्ता बांध दे। ऐसा करने से सूजन और दर्द दोनों दूर होते है।

7 – बरगद से बवासीर  समस्या दूर होती है। बरगद के कुछ कोमल पत्तो को मिक्सचर में घोटकर पानी से साथ दो से तीन दिन पिने से बवासीर और खून निकलने की समस्या दूर होती है।

8- बरगद के फल का चूर्ण गाय के दूध या घी के साथ सेवन करने से बार – बार पेशाब की समस्या दूर होती है।

 

बरगद के दूध के लाभ

बरगद का पेड़ (bargad ka pedh)धार्मिक महत्वता के साथ एक औषधि के तोर पे भी उत्तम माना जाता है। बरगद के पेड़ की हरएक चीज मनुष्य के लिए लाभदायी है।

  • हमारे शरीर से वाट, पित्त और कफ जैसी समस्या दूर करने के लिए बरगद का दूध अति उत्तम माना जाता है।
  • बरगद का दूध प्रकृति से बहुत ठंडा माना जाता है, उसके सेवन से शरीर की गर्मी दूर होती है।
  • बरगद के दूध से मानव शरीर की मजबुताई में वृद्धि होती है। इस दूध में कैल्शियम की मात्रा ज्यादा होती है। जिसे मनुष्य की हड़िया मजबूत बनती है।
  • बरगद का दूध त्वचा को तेज और चमीकिली बनाता है। इसे चेहरे पर लगाने से चेहरे के काले दाग और खिल दूर होते है।
  • रक्तस्त्राव को रोकने के लिए, घाव को रुझान के लिए बरगद के दूध का इस्तेमाल होता है।

याद रहे – बरगद का दूध का सेवन हमें घी, चा या कोफ़ी के साथ करना चाहिए। सिर्फ बरगद का दूध का सीधा उपयोग न करे।

 

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Banyan Tree In Hindi में दी गयी जानकारी आपको मददरूप  होगी, ये आशा करता हु। Banyan Tree को एक औषधि के रूप में विस्तार से समझना है तो बरगद बेनिफिट इन हिंदी की पोस्ट में आप समज सकते हो। ये पोस्ट में  पतंजलि के आचार्य बाल कृष्णा जी ने गहयाई से समझाया है।

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