भगवान दत्तात्रेय के भक्त दत्तबावनी के पाठ करते है। पूंजय रंग अवधूत महाराज को गुरु मानाने वाले उनकी यह रचना का नित्य भजन करते है। दत्त बावनी (Dutt Bavani ) के पावन भजन से तन मन को शांति की अनुभूति होती है। पुंजय बापजी एवं दत्तात्रेय भगवान पे सम्पूर्ण श्रद्धा से नित्य दत्तबावनी के भजन करने से सभी मनोकामना की पूर्ति होती है।
दत्त बावनी – Dutt Bavani in Hindi
जय योगेश्वर दत्त दयाल तू एक जग महाप्रतिपाल।
अत्रि अनसूया करि निमित, प्रगट्यो जग कारण निश्चित।।
भ्रह्मा हरिहर नो अवतार, शरणा गत नो तारण हार।
अंतर्यामी सत चित सुख, बहार सद्गुरु ध्रिभुज सुमुख।।
जोली अन्नपूर्णा करमाय, शांति कमंडर कर शोहाय।
क्याय चतुर्भुज षड्भुज शाद, अनंत बाहु तू निर्धार।।
आव्यो शरणे बाल अजाण, उठ दिगंबर चाल्या प्राण।
सुणी अर्जुन केरो साद, रिज्यो पूर्वे तू साक्षात्।।
दीधी रिद्धि सिद्धि अपार, अन्ते मुक्ति महापद सार।
कीधो आजे केम विलम्ब, तुज विन मुजने ना आलम्ब।।
विष्णु शर्म द्रीज तार्यो एम् जम्यो श्राद्ध माँ देखि प्रेम।
जम्म दैत्य थी त्रास्या देव, कीधी महेर ते त्या ततखेव।।
विस्तारी माया दितिसुत इन्द्र करें हाणाव्यो तूर्त।
ऐवी लीला कई कई शर्व कीधी वर्णवे को ते सर्वे।।
दोड्यो आयु शुतने काम कीधो ऐने ते निष्काम।
बोडया यदु ने परशुराम शाध्य देव प्रहलाद अकाम।
ऐवि तारी कृपा अगाध केम सुने ना मारो साद।
दौड़ अंत ना देख अनंत, माँ कर अध्वच शिशु नो अंत।।
जोई डिजस्त्री केरो स्नेह थयो पुत्र तू नि:संदेह।
स्मृतगामी कलितार कृपाल, तार्यो धोबी चेक गमार।।
पेट पीड़ थी विप्र, भ्रह्माण शेठ उगार्यो श्रीप।
करे केम ना मारी वार जो आणि गम एकज वार।।
शुष्क काष्ठ ने आन्या पत्र थयो केम उदासीन अत्र।
ज़ंज़र वंध्या केरा स्वप्न कर्या सफल ते सूत ना कृत्स्न।।
करि दूर भ्रह्माण ना कोढ़ कीधा पुराण तेने कोढ़।
वंध्या भेस दुजवी देव हर्युं दारिद्र ते ततखेव।।
झालर खाई रिज्यो एम दीधो सुवर्णघट स प्रेम।।
भ्रह्माण स्त्री नो मृत भरथार कीधो सजीवन ते निर्धार।
पिचास पीड़ा कीधी दूर विप्र पुत्र उठादियो सुर।
हरी विप्रमद अत्यंज हाथ रक्ष्यो भक्त तिविक्रम तात।।
निमेष मात्रे तन्तुक एक पहोचादियो श्री शैले देख।
एकी साथै आठ स्वरुप धरीदेव बहुरुप अरूप।।
सन्तोस्या निज भक्त सुजात आपि परचाओ साक्षात्।
यवनराज नी ताणी पीड़ जात पातनी तने ना चीड़।।
रामकृष्ण रुपे ते एम् कीधी लीलाओ कई तेम।
तार्या पथ्थर गणिका व्याध पशु पंखी पन तुजने साध।।
अधम ओधारण तारु नाम गाता सरे ऐना सा सा काम।
आधी व्याधि उपाधि सर्वे तणे स्मरण मात्र थी सर्वे।।
मुठ चोट ना लागे जाण पामे नर स्मरणे निर्माण।
डाकण साकण भेसा सुर भुत पिचशो जंड असुर।।
नासे मुठी दइने तूर्त दत्त धुन संभरता मूर्त।
करी धुप गाये जे एम् दत्तबावनी आशा प्रेम।।
सुधरे तेना बन्ने लोक रहने तेने क्याय शोक।
दासी सिद्धि तेनी थाय दुःख दारिद्र तेना जाय।।
बावन गुरुवार नित्य नियम करे पाठ बावन स प्रेम।
यथा अवकाशे नित्य नियम तेने कड़ी ना डंडे यम।।
अनेक रुपे एज अभंग भजता नड़े ना माया रंग।
सहस्त्र नामे नामी एक दत्त दिगंबर असंग छैक।।
वंदु तुजने वारं वार वेद श्वास तारा निर्धार।
थाके वर्णव ता ज्या शेष कोण रांक हु बहु कृत वेश।।
अनुभव तृप्ति नो उदगार सुणी हसे ते खासे मार।
तपसी तत्वमसि ए देव बोलो जय जय श्री गुरुदेव।।
अवधूत चिंतन गुरु देवदत्त – दत्त बावनी सम्पूर्णम
દત્ત બાવની ગુજરાતી – Dutt Bavani in Gujarati
જય યોગેશ્વર દત્ત દયાળ તુજ એક જગ મહા પ્રતિપાળ.
અત્રિ અન્સુયા કરી નિમિત્ત પ્રગટ્યો જગ કારણ निश्चित.
બ્રહમાં હરિહર નો અવતાર શરણા ગત નો તારણ હાર .
અંતર્યામી સત ચિત્ત સુખ બહાર સદગુરુ દ્વિભુજ સુમુખ.
જોળી અન્નપૂર્ણા કરમાય શાંતિ કમન્ડલ કર સોહાય .
ક્યાંય ચતુર્ભુજ સદ્ભુજ સાદ અનંત બાહુ તું નીર્ધાર.
આવ્યો શરણે બાલ અજાણ ઉઠ દિગમ્બર ચાલ્યા પ્રાણ .
સુણી અર્જુન કેરો સાદ રીઝયો પૂર્વે તું સાક્ષાત .
દીધી રિદ્ધિ સિદ્ધિ અપાર અંતે મુક્તિ મહાપદ સાર .
કીધો આજે કેમ વિલંબ તુજ વિણ મુજને ના આલંબ .
વિષ્ણુ શર્મ દ્રીજ તાર્યો એમ જામ્યો શ્રાદ્ધ માં દેખી પ્રેમ .
જંભ દૈત્ય થી ત્રાસયા દેવ કીધી મહેર તે ત્યાં તતખેવ .
વિસ્તારી માં આદિતિ સુત ઇન્દ્ર કરે હણાવ્યો તુર્ત .
એવી લીલા કઈ કઈ સર્વ કીધી વર્ણવે કો તે સર્વે .
દોડ્યો આયુ સુતને કામ કીધો એને તે નિષ્કામ.
બોડયા યદુ ને પરશુરામ સાધ્ય દેવ પ્રહલાબ અકામ .
એવી તારી કૃપા અગાધ કેમ સુણે ના મારો સાદ .
દોડ અંત ના દેખ અનંત માં કર અધવચ શિશુ નો અંત .
જોઈ ડિજસ્ત્રી કેરો સ્નેહ થયો પુત્ર તું નિઃ સંદેહ.
સ્મૃતગામી કલિતાર કૃપાળ તાર્યો ધોબી છેક ગમાર.
પેટ પીડ થી તાર્યા વિપ્ર બ્રાહ્મણ શેઠ ઉગાર્યા ક્ષિપ્ર.
કરે કેમ ના મારી વાર જો આણીગમ એકજ વાર.
શુષ્ક કાષ્ઠ ને આણ્યાં પત્ર થયો કેમ ઉદાસીન અત્ર.
જંજર વંધ્યા કેરા સ્વપ્ન કર્યા સફળ તે સૂત ના કૃત્સ્ન.
કરી દૂર બ્રાહ્મણ ના કોઢ કીધા પુરાણ તેના કોધ.
વંધ્યા ભેંશ દૂઝવી દેવ હર્યું દારિદ્ર તે તતખેવ.
ઝાલર ખાયી રીઝયો એમ દીધો સુવર્ણ ઘટ સપ્રેમ.
બ્રાહ્મણ સ્ત્રી નો મૃત ભરથાર કીધો સજીવન તે નીર્ધાર.
પિચાસ પીડા કીધી દૂર વિપ્ર પુત્ર ઉઠાડ્યો સુર.
હરિ વિપ્રમદ અત્યંજ હાથ રક્ષ્યો ભક્ત ત્રિવિક્રમ તાત.
નિમેષ માત્રે તંતુક એક પહોચાડીયો શ્રી શૈલે દેખ.
એકીસાથે આઠ સ્વરુપ ધરી દેવ બહુ રુપ અરૂપ.
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સન્તોસ્ય નિજ ભક્ત સુજાત આપી પરચાઓ સાક્ષાત.
યવનરાજ ની ટાળી પીડ જાત પાટ ની તને ના ચીડ.
રામકૃષ્ણ રૂપે તે એમ કીધી લીલાઓ કઈ તેમ.
તાર્યા પથ્થર ગણિકા વ્યાધ પશુ પંખી પણ તુજને સાથ.
અધમ ઉદ્ધારણ તારું નામ ગાતા સરે એના સા સા કામ.
આધિ વ્યાધિ ઉપાધિ સર્વ તળે સ્મરણ માત્ર થી સર્વે.
મુઠ ચોટ ના લાગે જાણ પામે નર સ્મરણે નિર્માણ.
ડાકણ સાકણ ભેંશા સુર ભૂત પીચાસો જંડ અસુર.
નાસે મુઠ્ઠી દઈને તુર્ત દત્તં ધૂન સાંભરતા મૃત.
કરી ધૂપ ગાયે જે એમ દત્ત બાવની આશા પ્રેમ.
સુધરે તેના બંને લોક રહે ન તેને ક્યાંય શોક.
દાસી સિદ્ધિ તેની થાય દુઃખ દારિદ્ર તેના જાય.
બાવન ગુરુવાર નિત્ય નિયમ કરે પાથ બાવન સપ્રેમ.
યથા અવકાશે નિત્ય નિયમ તેને કદી ના દંડે યમ.
અનેક રૂપે એજ અભંગ ભજતાં નડે ના માયા રંગ.
સહસ્ત્ર નામે નામી એક દત્ત દિગમ્બર અસંગ છેક.
વંદુ તુજને વારં વાર વેદ શ્વાશ તારા નીર્ધાર.
થાકે વર્ણવ તા જ્યાં શેષ કોણ રાંક હું બહુ કૃત વેશ.
અનુભવ તૃપ્તિ નો ઉદગાર સુણી હશે તે ખાસે માર.
તપસી તત્વમસિ એ દેવ બોલો જય જય શ્રી ગુરુદેવ.
અવધૂત ચિંતન શ્રી ગુરુદેવ દત્ત –
દત્ત બાવની
भक्त जानो के लिए दत्त बावनी से जुडी रोचक जानकारी
दत्त बावनी की रचना किसने और कब की थी ?
दत्त बावनी (Dutt Bavani) की रचना 4/2/1935 में हुई थी।
पुंजय रंग अवधूत महाराज ने दत्तबावनी की रचना की थी।
दत्तबावनी के रचना के समय पूंजय अवधूत महाराज गुजरात के मेहसाणा जिले में थे। मेहसाणा जिला, कलोल तालुका के सैज गांव में बापजी अपने भक्तो के साथ भजन कीर्तन कर रहे थे। सैज गांव के बहार सिद्धनाथ महादेव का मंदिर है। मंदिर की धर्मशाला में दत्त बावनी की रचना हुई थी।
कहा जाता है की लक्ष्मी बेन त्रिपाठी नामकी स्त्री भुत पिचास एवं रोगो रे पीड़ित थी। वो बापजी के पास निवारण हेतु आयी थी। बापजी ने इस वक्त दत्त बावनी की रचना की थी। और वह स्त्री को दत्तबावनी के पाठ करने को कहा।
दत्तबावनी (Dutt Bavani) भगवान दत्तात्रेय की लीलाओ वर्णन करने वाला भजन है। इसमें बावन पंक्ति है। पूंजय रंग अवधूत महाराज को मानाने वाले दत्त संप्रदाय की संख्या बड़ी है। और यह संख्या दिन बदिन बढ़ती जाती है। दत्त संप्रदाय में दत्त बावनी को एटम बम कहा जाता है।
दत्त बावनी के रचयिता श्री रंग अवधूत महाराज
दत्त बावनी के नियम
पूंजय बापजी द्वारा निर्मित दत्तबावनी स्त्री, पुरुष, बच्चे कोई भी कर सकते है।
दत्त बावनी (Dutt Bavani) के कोई खास नियम नहीं है।’ यथा अवकशे नित्य नियम’ हम हमारे समय में कर सकते है। नित्य नियम के साथ किया जाये तो अच्छा है।
52 गुरुवार तक 52 पाठ का विशेष महत्व है। भक्त जान ये व्रत करते है।
रंग अवधूत महाराज के कथन के अनुशार दत्तबावनी का पाठ प्रातः काल एवं सायं काल होना चाहिए।
दत्तबावनी के पाठ आप कही भी कर सकते हो। मंदिर में, मथ में, घर में हमारा ध्यान भगवान दत्तात्रय में होना चाहिए।
सूतक के समय में दत्त बावनी (Dutt Bavani) के पाठ नहीं करना चाहिए।
यदि कोई स्त्री मासिक धर्म पर है तो उसे भी दत्तबावनी ले पाठ नहीं करने चाहिए।
दत्त बावनी से क्या लाभ होते है ?
रंग अवधूत महाराज निर्मित दत्तबावनी बापजी का दिव्य प्रसाद है। जिसे रोग पठन करके मनुष्य धन्य होता है।
दत्त बावनी (Dutt Bavani) से अनिष्ट शक्तिओ का नाश होता है।
कितनी भी पुराणी बीमारी दत्तबावनी के पाठ से दूर होती है।
मनुष्य की मानशिक एवं शारारिक स्थिति बेहतर होती है।
अचानक कोई संकट या दुःख दूर होते है।
दत्त बावनी का पठन भक्तो को संतोष प्रदान करती है।
मनुष्य की कोई भी उपाधि नष्ट होती है।
दत्तबावनी (Dutt Bavani) के नित्य पठन से पृथ्वी लोक और परलोक दोनों जगह सुख प्राप्त करता है।
बावन गुरुवार नित्य पाठ करने से यमराज भी दंड नहीं करते। और मनुष्य की सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
दत्त बावनी से होने वाले लाभ का वर्णन दत्त बावनी में विस्तृत में बताया गया है।
04/02/1935 के दिन पुंज्य रंग अवधूत महाराज द्वारा सबसे पहले लिखी गयी दत्त बावनी
श्री हनुमान चालीसा माँ सरस्वती वंदना मंत्र
श्री सत्यनारायण कथा वैभव लक्ष्मी व्रत कथा
संतोषी माता की आरती सोमवार व्रत कथा
Nareshwar Dham- गुजरात भरुच – नारेश्वर श्री रंग अवधूत मंदिर
आज नारेश्वर की पावन भूमि पर पूंजय रंग अवधूत महाराज का विशाल मंदिर है। वह अन्नक्षेत्र निरंतर चलता है। वहा दत्त बावनी ( Dutt Bavani ) एवं हर रोज आरती की जाती है।
Maya ke pare hai.