यहाँ माता पार्वती जी की आरती (Parvati Mata KI Aarti) का वर्णन है। माता पार्वती को उमा के नाम से भी बुलाया जाता है। देवो के देव महादेव की धर्मपत्नी पार्वती का उपनिषदों में उल्लेख है। केनोपनिषद के तीसरे और चतुर्थ खंड में माता पार्वती का वर्णन किया गया है। जिसमे माता पार्वती को वैश्विक शक्ति और सांसारिक माँ के रूप में वर्णन किया गया है।
माता पार्वती की पुर्नजन्म की कथा
माता पार्वती का पहला जन्म दक्ष प्रजापति की पुत्री थी । उस जन्म में भी वो महादेव की पत्नी ही थी। दक्ष प्रजापति में पार्वती पति महादेव का अपमान किया था। सबके सामने अपने पति के अपमान को पार्वती सहन नहीं कर पायी। माता पार्वती ने खुद को अग्नि में भस्म कर दिया था। दूसरे जन्म में हिमनरेश के घर पार्वती बनकर जन्म लिया।
पार्वती माता की तपस्या
माता पार्वती अपनी तपस्ता के लिए जग विख्यात है। भोलेनाथ को पाने के लिए माता पार्वती ने कड़ी तपस्या की है। शिवजी मनाने पार्वती जी ने वन में जाके तपस्या की है। कही सालो तक उपवास किया है। ठंडी, गर्मी, बारिस की कही ऋतु तक घोर तप किया तब जाके शम्भुनाथ प्रसन्न हुए।
पार्वती माता की परीक्षा
माता पार्वती ने शिवजी को प्रसन्न करती थी इसीलिए, घोर तपस्या की थी। पर ये अनुराग कितना उचित है ये देखने भगवान शंकर ने भी माता की कठिन परीक्षा ली थी। कही ऋषिमुनियों को माता पार्वती के पास भेजा था। ऋषिमुनियों ने कहा ये वर आपके लिए उचित नहीं है। ये लम्बी जटा वाला, स्मशान में रहने वाला, वेषधारी आपको क्या सुख दे पायेगा।
पार्वती माता कभी विचलित नहीं हुई। अपने विचार पे दृढ निश्चयी बनकर तपस्या करती रही। माता पार्वती का शिवजी के प्रति समर्पण भाव को देख के सभी ऋषि प्रसन्न हो गए। और अपनी तपस्या में सफल होने का आशीर्वाद दिया। ऋषियों के वचन सुनकर शिवजी भी प्रसन्न हुए। और माता पार्वती की तपस्या रंग लायी। और भगवान शंकर और माता पार्वती जी का विवाह हुआ।
पार्वती माता की आरती- Parvati Mata Ki Aarti
माता पार्वती शक्ति की देवी है। भक्तगण शक्ति की उपासना करते है। प्राथना करते है, आरती करते है ।और संसार सागर पर करने के लिए शक्ति की याचना करते है।
माता पार्वती जी की आरती – Mata Parvati ji Ki Aarti
जय पार्वती माता,जय पार्वती माता।
ब्रह्मा सनातन देवी, शुभ फल की दाता।।
जय पार्वती माता।
अरिकुल कंटक नासनि, निज सेवक त्राता।
जगद जननी जगदम्बा, हरिहर गुण गाता।।
जय पार्वती माता।
सिंह को वाहन सांजे, कुंडल है साथा।
देव वधु जस गावत, नृत्य करत ता था।
जय पार्वती माता।
सतयुग रूप शील अति सुन्दर, नाम सती कहलाता।
हेमांचल घर जन्मी, सखिया संगराता।।
जय पार्वती माता।
शुम्भ निशुम्भ विदारे,हेमांचल स्थाता।
सहस्त्र भुजा तनु धरिके, चक्र लियो हाथा।।
जय पार्वती माता।
सृष्टि रुप तुहि है जननी, शिव संग रंगराता।
नन्दी भृंगी बीन लही, सारा जग मदमाता।।
जय पार्वती माता।
देवन अरज करत हम, चरण ध्यान लाता।
तेरी कृपा रहे तो, मन नहीं भरमाता।।
जय पार्वती माता।
मैया जी की आरती, भक्ति भाव से जो नर गाता।
नित्य सुखी रह करके, सुख संपत्ति पाता।।
जय पार्वती माता।
जय पार्वती माता,जय पार्वती माता।
ब्रह्मा सनातन देवी, शुभ फल की दाता।।
जय पार्वती माता।
शिव पार्वती विवाह
माता पार्वती के साथ विवाह करने बारात लेकर शिवजी हिमालय पहुंचे। बारात में उनके साथ स्मशान से भूत, प्रेत पिचास भी ए थे। ये सभी भोलेनाथ के बाराती बनकर नाच रहे थे। शिवजी ने अपने साथ डमरू और त्रिशूल ले रखा था। शुभ मुहरत में शिव पार्वती का विवाह हुआ। और शिवजी पार्वती को लेकर कैलाश पर्वत पे चले गए।
Shivji Ki Aarti – शिवजी – भोलेनाथ की आरती
Shambhu Sharne Padi- शम्भू शरणे पड़ी – शिवजी की स्तुति
Kavi Kamboi Stambheshwar Mahadev Temple