भारतीय संस्कृति धर्म और ज्ञान से बहरी हुई है। सनातन हिन्दू धर्म में हरेक कृति का कोई महत्व होता है। त्यौहार हमारे जीवन में खुशिया प्रदान करते है। जीवन में उत्साह बढ़ाते है, ऊर्जा बढ़ाते और नयी शिख देते है। रक्षाबंधन हमारे जीवन को प्रेरणा देने वाला त्यौहार है। Rakshabandhan ka Tyohar भी हमारे प्रमुख त्योहारों में से एक है।
भारत की भूमि त्योहारों से भरी हुई है। मनुष्य अपने हर रोज के काम काज से बोर न हो जाये, परेशान न हो जाये इसीलिए हमरे ऋषिमुनियों ने त्यौहार दिए।
रक्षाबंधन का त्यौहार (Rakshabandhan ka Tyohar) कब मनाया जाता है ?
इस साल रक्षाबंधन का त्यौहार 22 अगस्त 2021 को है। उस दिन रविवार है।
हिन्दू पंचांग के अनुशार श्रवण महीने की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है।
रक्षाबंधन- Rakshabandhan Festival
निस्वार्थ प्रेम और बंधन का त्यौहार रक्षाबंधन है। भाई बहन का सबसे पवित्र त्यौहार रक्षाबंधन। एक भाई के नाते हरेक भाई अपनी बहन के साथ झगड़ा करता है। पर हम जानते है की ये झगड़ा मीठा होता है। बहुत ही प्यारा होता है। रक्षाबंधन भाईबहन के प्रेम को अपने अंदर से बहार लेन का एक जरिया है।
विश्व का कोई भी भाई अपनी बहन से या कोई भी बहन अपने भाई से स्नेह होना लगाव होना आम बात है। पर भाई की रक्षा के लिए बहन का बंधन ये सनातन में ही दिखाया है। रक्षा का धागा बहुत लोगो ने बांधा है। इसका इतिहास पुराना है।
रक्षाबंधन का त्यौहार पवित्र सावन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। बहन कही भी हो अपने भाई के पास पहुंच जाती है। बहन रेशमी धागे की राखी ( आज बाजार में बहुत सारी राखी उपलब्ध है ) के साथ मिठाई, कुमकुम, अक्षत की थाली लेकर भाई के पास जाती है।
भाई के कपाल पे कुम कुम से तिलक किया जाता है। अक्षत लगाया जाता है। डायने हाथ पे राखी बांधी जाती है। और भाई को मिठाई खिलाई जाती है। भाई बहन को कोई उपहार देता है। ये दृश्य देखने वाले दंग हो जाते है। ये पूरी प्रक्रिया के दौरान भाई बहन का उभरता हुआ निस्वार्थ प्रेम दिखाई देता है। जिसकी कल्पना करना किसी दूसरे रिश्ते में मुमकिन नहीं है।
रक्षाबंधन के त्यौहार का महत्व
रक्षाबंधन का महत्व सिर्फ हिन्दू धर्म तक सिमित नहीं है। Rakshabandhan ka Tyohar सभी धर्म और जाती के लिए है। इस्तिहस देखे तो राखी की कीमत सभी ने चुकाई है। यहाँ निश्वार्थ प्रेम की परिभासा नजर आती है। किसी की रक्षा करने हेतु बाँधी गयी राखी की कीमत अनमोल होती है। इसीलिए भाई बहन की रक्षा की जिम्मेदारी लेता है। इतना ही नहीं बहन की रक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर करने में भी देर नहीं लगाते।
सदियों से चलती परंपरा को जीवित रखता है। हर साल उमंग से मनाई जाने वाली रक्षाबंधन भाई बहन के पवित्र प्रेम को जीवित रखता है।
रक्षाबंधन कैसे मनाते है?
हमारे देश में इस त्यौहार का खास महत्व है। क्युकी सभी धर्म के लोग इस त्यौहार को मनाते है।
हमारे प्रधान मंत्री एवं राष्ट्रपति भी इसे हर्षोल्लास से मनाते है। बच्चे हमारे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को राखी बांधते है। और उनके प्रति अपना प्रेम प्रगट करते है।
हमारे देश की सैनिक हमारी रक्षा करते है। त्यौहार के इस समय में वो बॉर्डर पे होते है। देश की रक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डालते है। ऐसे वीर सैनिक देश की बॉर्डर पे ही रक्षाबंधन मनाते है। ज्यादातर ऐसा सीखने को मिला है की हमारे रक्षामंत्री उस दिन सैनिको के साथ समय बिताते है। अपनी बहनो की भेजी हुई राखी बच्चो के पास बंधवाते है।
पूरा देश सैनिको की इस समर्पण भावना की सराहना करता है। हमें सुरक्षा प्रदान करने वाले हमेशा सुरक्षित रहे ये कामना करते है।
भ्राह्मण के लिए इस त्यौहार का विशेष महत्व है। भ्राह्मण साल में एक बार जनोई बदलते है। और ये दिन रक्षाबंधन का होता है। रक्षाबंधन के दिन पूजा पाठ करने के बाद जनोई बदलते है। इसकी एक सम्पूर्ण प्रक्रिया होती है जिसे भ्राह्मण सह परिवार पूर्ण करता है।
रक्षाबंधन के दिन सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानोंमें छुट्टी होती है। सब एक दूसरे को रक्षाबंधन की बधाई देते है। पूरेदेश में यह त्यौहार धमधुम से मनायाजाता है।
रक्षाबंधन की पौराणिक कथा।
रक्षाबंधन युगो से चला आ रहा त्यौहार है। रामायण महाभारत के समय में भी राखी के प्रसंग मिलते है। देव दानव के युद्ध हो या मुघलो का समय हो, सभी सदीओ में राखी का विशेष महत्व दिया गया है। Rakshabandhan ka Tyohar का वर्णन हमें पौराणिक कथा में मिलता है। इसे विस्तार से समजते है।
कृष्ण द्रोपदी कथा
शिशुपाल को भगवान कृष्ण का वचन था की 100 अपशब्द तक वो सहन करेंगे। द्रुपद राजा के राज दरबार में शिशुपाल अपनी लक्ष्मण रेखा को पर कर गया। भगवान कृष्ण ने अपना सुदर्शन से शिशुपाल का वध कर दिया। सुदर्शन सर छेदन के बाद वापस आया तो उसे कृष्ण भगवान की जंगली काट गयी थी।
अंगली में से खूब निकल ने लगा था। द्रोपदी ने यह देख कर अपनी साड़ी फाड् कर अंगली पे बांधी। इस समय भगवान कृष्ण ने वचन दिया था की मुशुबाट में आपको मदद करूँगा।
जब पांडव जुए में द्रोपदी को हर जाते है, तब कौरव द्वारा चिर हरण किया जाता है। इस समय भगवान कृष्ण द्रोपदी की सहायता करते है। द्रोपदी के चिर पुरते है। यहाँ द्रोपदी के द्रारा बांधा गया एक साड़ी का धागा प्रेम और निस्वार्थ भरा था। इसीलिए एक वैश्विक शक्ति को मदद के लिए दौड़ना पड़ा।
एक बार देव और दानवो का युद्ध हो रहा था। उस याद में दानव शक्तिमान दिख रहे थे। देवता का पराजय निश्चित लग रहा था। तब देवता भगवान इंद्र के पास सहाय के लिए आये।
देवो की बात सुनकर इन्द्राणी ने एक रक्षा के लिए धागा बांध दिया। इन्द्र भगवान ने देवो के साथ मिलकर दानवो से युद्ध किया और दानवो को पराजित किया। कहते है की इन्द्राणी के रक्षा कवच के कारन देवो ने यह युद्ध जीता था।
माता कुंती अभिमन्यु के साथ जुड़ा हुआ है रक्षाबंधन
महाभारत का युद्ध आज भी संके मन में है। याद में अभिमन्यु को लड़ने जाना था। सात कोठा का युद्ध के लिए नवयुवन को भेजने से सभी संकोच करते थे। ऐसे में माता कुंती ने अभिमन्यु को एक रक्षा के लिए धागा बांधा था।
कथा के अनुशार अभिमन्यु का मृत्यु निश्चित था। याद के समय अभिमन्यु के रथ पर एक चूहा घूम रहा था। उस चूहे ने वह धागा काट दिया था। और अभिमन्यू का सात कोठे के युद्ध में वध हुआ था।
राजा बलि के साथ रक्षाबंधन का महत्व
राजा बलि दानवीर राजा था। उसने 100 यज्ञ कर लिया था। उसने स्वाग का राज्य छीनने का प्रयाश किया था। उस वक्त इन्द्र के साथं सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और राजा बलि के उत्पात से बचने को कहा।
भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर पृथ्वी पर गए। और बलि राजा से दान में तीन गज भूमि की मांग की। बलि राजा दानवीर थे उन्होंने है कर दी । वामन अवतार में भगवान विष्णु के तीन पग में से, एक पाताल में,एक आकाश में और एक पृथ्वी रख दिया। राजा बलि को रसातल में भेज दिया।
भगवान विष्णु द्रारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर करने वाले इस प्रसंग को बलेव भी कहते है।
कथा के अनुशार बलि राजा ने अपनी भक्ति के बल पर भगवान को अपनी पास रहने का वचन ले लिया। भगवान विष्णु को अपने से दूर रहता देखकर लक्ष्मी जी परेशान हो गयी। लक्ष्मीजी ने राजा बली राजा बलि को रक्षा बांधकर अपना भाई बनाया और विष्णु जी को वापस अपने पास ले आयी। इस दिन भी सावन महीने की पूर्णिमा थी।
पहले देश में राजा शाही थी। राजपूत राजा अपने शौय के लिए जाने जाते थे। दुश्मन से युद्ग के लिए जाते समय राजा की पत्नी अपने पति को तिलक करती थी। और साथ में रक्षा के लिए राखी बांधती थी।
इस्तिहस में महारानी कर्णावती और मुग़ल बादशाह हुमायु की कथा प्रचलित है। कर्णावती मेवाड़ का राज चला रही थी। बहादुरशाह नामका राजा हमले की तयारी करता था। ऐसे वक्त में रानी कर्णावती ने हुमायु को राखी भेजी और अपनी रक्षा करने का सन्देश भेजा।
कर्णावती का सन्देश से हुमायु सैन्य के साथ मदद के लिए पंहुचा। उन्होंने बहादुर शाह को हराया। और अपने धर्म की बहन की राखी के बंधन को निभाया।
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Rakshabandhan ka Tyohar पूरी दुनिया में जहा भारतीय है वहां मनाया जाता है। त्यौहार हमारी जीवन चेतना को जीवित रखता है। और रक्षाबंधन जैसे त्यौहार हमें निस्वार्थ भाव से जीना सिखाते है।