सनातन हिन्दू धर्म में कहा जाता है की हमारे 33 कोटि देवी देवता है। हरेक देवी देवता ओ का अपना अलग महत्व है। सबकी पूंजन विधि करने का भी एक तरीका है। मनुष्य अपनी श्रद्धा और भक्ति से किसीभी देवी देवता का पूंजन कर सकता है। यहाँ अति प्रचलित माता संतोषी के व्रत की कथा (Santoshi Mata Vrat Katha) है।
माता संतोषी की व्रत कथा के साथ, व्रत कैसे करे ? माता संतोषी के व्रत के दौरान क्या खाये ? पूजन विधि क्या है ? उद्यापन कैसे करे यह सम्पूर्ण माहिती यहाँ उपलब्ध है।
संतोषी माता की व्रत कथा – Santoshi Mata vrat Katha
एक साप्ताह के सात वार है। सात वार को सोमवार महादेव का पूंजन किया जाता है। शनि वार को हनुमानजी का पूंजन होता है। ठीक वैसे ही शुक्रवार को माता संतोषी का पूंजन होता है।
हिन्दू शास्त्रों के अनुशार गणपति गजानन माता संतोषी के पिता है। और रिद्धि सिद्धि माता संतोषी की माता है। सात वारो में शुक्रवार माता संतोषी को अर्पण है। शुक्रवार के दिन माता का पूजन करने से मनुष्य हर इच्छा पूर्ण होती है।
सबको संतोष प्रदान करने वाली माता संतोषी का व्रत कर मनुष्य धन्यता प्राप्त करता है। शुक्रवार को किया जाने वाला संतोषी माता का व्रत कथा और पूंजन अति लाभदाई है। हिन्दू धर्म में माता संतोषी को सुख, शांति, समृद्धि और वैभव प्रदान करने वाली देवी कहा जाता है।
संतोष हर मनुष्य के लिए उत्तम जरूरियात है। असंतोष मानव को मानशिक और शारारिक दोनों तरह से तोड़ देता है। माता संतोषी संतोष प्रदान करने वाली देवी है। उसकी पूंजा, अर्चना और नित्य आराधना से मनुष्य संतोषी बनता है।
संतोषी माता के व्रत के लिए जरुरी पूंजन सामग्री
1 – संतोषी माता की मूर्ति अथवा तस्वीर
2 – नारियल
3 – बाजठ – लकड़ी का छोटा टेबल जिसपे तस्वीर रख सके
4 – अगरबत्ती
5 – अबिल, गुलाल, कंकु
6 – चना गुड़ ( प्रसाद के लिए )
7 – कपूर
8 – दीपक
9 – फूल
10 – पान के पत्ते
11 – लालवस्त्र
12 – चुनरी
13 – हल्दी
14 – कलश (स्वच्छ पानी भरा हुआ)
15 – हल्दी मिलाया हुआ पीला चावल
16 – माता जी के लिए चुंदड़ी
17- Supari
सनातन हिन्दू धर्म में ये परम्परा है की, किसी भी योग्य काम करने से पहले विग्नहर्ता गणेश का पूंजन किया जाता है।
गणपति गजानन के साथ उनकी पत्नी रिद्धि सिद्धि का भी पूंजन किया जाता है।
इसीलिए कथा शरू करने से पहले विग्न हर्ता को प्राथना करनी चाहिए।
संतोषी माता के व्रत की पूंजन विधि
पूंजन विधि करने से पहले ऊपर बताई गयी सामग्री का पहले से इंतजाम करले।
शुक्रवार के दिन सुबह में सूर्योदय से पहले उठे। दैनिक क्रिया, साफ सफाई एवं स्नान करके तैयार हो जाये।
घर में मंदिर के पास या कोई एक पवित्र जगह पसंद करे। उस जगह पर माता संतोषी की तस्वीर स्थापित करे।
कलश में स्वच्छ पानी भरकर माता संतोषी के सामने रखे। कलश के गुड़ और चना से भरा कटोरा रखे।
माताजी के सामने घी का एक दीपक और अगरबत्ती जला के रखे।
नारियल, लालवस्त्र या चुनरी, पान के पत्ते एवं फूल माताजी को अर्पण करे।
सम्पूर्ण तयारी के बाद संतोषी माता की जय बोलकर कथा का प्रारम्भ करे।
कथा के समय कथा सुनने वाले और सुनाने वाले के हाथ में गुड़ और चना रखे। कथा की समाप्ति के बाद यह गाय को खिला दे।
कथा सुनने वाले को बीचमे माता संतोषी की जय ये जाप चालू रखना है।
माता संतोषी की कथा के बाद पूर्ण भाव से आरती करे और सबको आरती प्रदान करे।
कथा के बाद कटोरा में रखे हुए चना और गुड़ का प्रसाद सबको बात देना है।
कलश में रखा हुआ स्वच्छ पानी घर की चारो दिशामे छिड़क और बचा हुआ तुलसी में सींचे।
शुक्रवार के दिन माँ संतोषी का व्रत-पूजन किया जाता है। इस पूजा के दौरान माता की आरती, पूजन तथा अंत में माता की कथा सुनी जाती है। आइए जानें! शुक्रवार के दिन की जाने वाली संतोषी माता व्रत कथा..
माता संतोषी की कथा – Santoshi Mata Vrat Katha
एक वृद्ध बुढ़िया थी, उनके सात पुत्र थे। सात पुत्र में से 6 पुत्र धन कमाते थे और एक बेकार था। बुढ़िया जब खाना बनाती कमाने वाले छह पुत्र को प्रेम के खिलाती थी। और सातवे पुत्र को बचाखुचा दे देती थी।
सातवां लड़का स्वाभाव से भोला था। वो ये सब समज नहीं पाता था। वो एक दिन अपनी भार्या से बोला मेरी माँ मुझे बहुत प्रेम और स्नेह से खिलाती है। पत्नी समझदार थी वह सब देखती थी।
पत्नी बोली – सबका बचा हुआ जूठा आपको खिलाती है।
वह बोला – ये संभव नहीं है। ऐसा नहीं हो सकता। में जब तक अपनी आँखों से न देखु तब तक विश्वास नहीं कर सकता।
पत्नी बोली – ठीक है मुझपे विश्वास न करो। जब आप खुद देखोगे तभी मानना। समय आने पर आपको भी पता चल जायेगा।
कुछ हि दिनों के बाद एक बड़ा त्यौहार आया। बुढ़िया ने बहुत अच्छा भोजन बनाया। भोजन में सात प्रकार के चूरमा के लड्डू बनाया।
अपनी पत्नी का कहा जांचने के लिए सातवा पुत्र सर दर्द का बहाना कर सो गया। एक पतला वस्त्र सर पे लपेटकर वहां क्या हो रहा है यह देखने लगा।
उसने देखा की सभी छह भाई ओ को आसन पे बिठाया। अलग-अलग प्रकार के बनाये हुए लड्डू और मिठाई आग्रह करके प्रेम से खिला रही थी। सभी के भोजन के बाद उनकी थाली में जो बचा था, उस जूठन इकठ्ठा कर एक लड्डू बनाया।
इसे एक छोटी सी थाली तैयार करके उसे उठाया और कहा तेरे सभी भाई ने भोजन कर लिया है, अब तू भी खाना खा ले।
माँ ने जो किया वो सब देखने के बाद निराश लड़का बोला, माँ आप मुझे सबका जूठा हुआ खाना खिलाती हो। मुझे भोजन की कोई इच्छा नहीं है। मुझे नहीं खाना है। में अब इस घर को छोड़कर कर परदेश जा रहा हु।
माता के कठोर वचन
बुढ़िया ने कठोर वचन बोलते हुए कहा – तुम कल जाने की इच्छा रखते हो तो अच्छा है आज ही चले जाओ।
अपनी माता के मुँह से इस प्रकार के वचन सुनकर पुत्र के पेरो के निचे से जमीन खिसक रही थी। पुत्र ने जवाब दिया चिंता न करो माता में अभी निकल रहा हु। और में अब आपके लायक बनके ही वापस लौटूंगा।
यह कहकर पुत्र घरसे निकल जाता है। जाते वक्त वो अपनी पत्नी जो गोशाला में गोबर का काम करती है उसे मिलने जाता है। पत्नी को बोला में धन कमाने हेतु परदेश जा रहा हु। तुम अपना ध्यान रखाना और एक गृहिणी का धर्म निभाना।
इस पर पत्नी बोली
जाओ पिया आनंद से हमारी सोच हटाए।
राम भरोसे हम रहे, ईश्वर तुम्हे सदाई।
देहु निशानी आपनी, देख धरु में धीर।
सुधि हमारी न बिसारियो, मन रखियो गंभीर।
पत्नी ने कहा ठीक है आप निश्चिंत होके जाओ। पर जाते – जाते आप मुझे कोई अपनी निशानी दे दो जिसे देखके में आपको याद कर शकु। पति के पास एक पुराणी अंगूठी थी उसे निकाल कर निशानी के तोर पर पत्नी को अर्पण की।
ठीक वैसे ही कुछ निशानी पति ने मांगी। पत्नी ने कहा मेरे पास इस गोबर के अलावा कुछ भी नहीं है। यह कहकर प्रेम से पति के पीठ के पीछे गोबर का एक ठप्पा मार दिया।
पुत्र का परदेश गमन
पुत्र गांव से दूर चलते चलते एक नगर पंहुचा। वहां उन्होंने एक बड़ी साहूकार की दुकान देखि। दुकान पे जाके बोला भाई मुझे कोई काम मिलेगा। में नौकरी करने के हेतु से गांव से आया हु।
साहूकार को एक काम बटाने वाले की जरुरत थी। उसने कहा ठीक है आपको काम मिल जायेगा पर दाम, काम देख कर ही त्यय होगा। सुबह सात बजेसे रात दस बजे तक काम रहेगा। काम की खोजमे निकला पुत्र बोला थीक है।
धन कमाने की और जीवन में आगे बढ़ने की इस्छा के कारन वो लगन से काम करने लगा। सभी ग्राहकों को माल बेचना, ग्राहकों से किस तरह बात करना और प्रमाणिकता से हिसाब किताब रखना।
साहूकार के और भी नौकर थे पर इसका काम काम देख के साहूकार खुश हो गया। और तीन महीने में ही उसे आधा हिस्सेदार बना दिया। और मालिक ने दुकान की जिम्मेदारी उसको सोप दी।
अपनी मेहनत और लगन के कारन दुकान पहले से बेहतर चलने लगी। और साहूकार के साथ ये भी एक शेठ बन गया।
पत्नी की स्थिति
पति की अनुपस्थिति में पत्नी की हालत ख़राब हो गयी थी। ससुराल के सभी व्यक्ति अनेक प्रकार से परेशान करते थे। सास, ससुर जेठानी ताने मारते थे। और घर का सभी काम उनसे करवाते थे।
उसे लकड़ी लेने के लिए जंगल में भेजा जाता था। आटा के भूसे से बनी रोटी खिलाते थे। टुटा नारियल में पानी दिया जाता था। जीवन से तंग आ गयी स्त्री अपने पति की उम्मीद से जिन्दा थी।
एक दिन वो लकड़ी लेने जंगल जा रही थी। उसने देखा बहुत सारी स्त्रियां एक मंदिर में एकत्र हुई थी। कुतूहल पूर्वक उसने वहां जाकर पूंछा आप क्या कर रहे हो ? ये करने से क्या लाभ होता है ? ये किस तरह करना चाहिए ?
तभी उनमे से एक स्त्री ने कहा ये संतोषी माता का व्रत है। पुरे श्रद्धा और भक्तिभाव से ये व्रत किया जाये तो अपनी सभी मनोकामना पूर्ण होती है। मनुष्य को सुख और समृद्धि मिलता है। और सभी प्रकार के पापो से मुक्ति मिलती है।
पति विरह से पीड़ित महिला ने कहा ये व्रत कैसे किया जाता है ? इसका विधिविधान क्या है ? और कैसे उसका अनुस्था करते है ? कृपा करके आप मुझे बताये।
व्रत की विधि
ये व्रत माता संतोषी पे पूरी श्रद्धा और भाव पूर्वक किया जाता है। इसके लिए गुड़ और चना खरीदना है। सावा आना या पांच आना का गुड़ और चना ख़रीदे। अपनी शक्ति के हिसाब से ख़रीदे।
माता संतोषी का ये व्रत सोलह शुक्रवार तक ये व्रत करते है। सभी का ये मानना है की अपनी सभी मनोकामना सोलह शुक्रवार याने तीन महीने में पूर्ण हो जाती है। सभी शुक्रवार को उपवास करना है।
माता संतोषी की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करना है। घी का दिया जलाकर माता संतोषी का पूजन किया जाता है। कलस में जल रखकर माता जी की कथा का वांचन करना है। यदि आप वांचन नहीं कर सकते तो दूसरे के पास वांचन करके आप को सुनना है।
सोलह में शुक्रवार या कार्य सिद्धि होने पर अध्यापन करना है। यदि किसी के ग्रह ख़राब चल रहे है तो कार्यसिद्धि में ज्यादा समय लग सकता है। उद्यापन में आटा का शिरा एवं चना गुड़ का प्रसाद के साथ खीर बनायीं जाती है।
अपने कुटुंब परिवार के आठ लड़को को भोजन कराना है। यदि कुटुंब में कोई नहीं है तो पड़ोसियों के पुत्रो को बुला सकते है और ब्राह्मण के पुत्रो को भी बुला के भोजन करवा सकते है।
भोजन के बाद सभी लड़को को यथा शक्ति दान – दक्षिणा देना है। शुक्रवार के व्रत के दिन किसी भी प्रकार का खट्टा नहीं खाना है। उद्यापन के दिन भी किसी को खट्टा नहीं खिलाना है। यह सुन दुखियारी स्त्री वहा से चली गयी।
माताजी का व्रत आराधना
बहु लकड़ी शर पे लेके चलने लगी। और निश्चय कर लिया की वो यह व्रत करेगी। उसने सर पे रखी लकड़ी बेच दी। मिले हुए पैसो से गुड़ और चना खरीद लिया। और माता संतोषी के मंदिर चली गयी।
माता जी को नमस्कार करके बोली माँ में अज्ञानी हु। में आपके व्रत के सभी नियन नहीं जानती। पर में पूर्ण श्रद्धा से ये व्रत कर रही हु। में आपकी शरण में आयी हु। कृपा कर के मेरी प्राथना स्वीकार करे।
इस तरह हर शुक्रवार संतोषी माता का व्रत करती और माताजी की आराधना करती। माताजी की कृपा हुई दूसरे ही शुक्रवार उसके पति का पत्र आया। और तीसरे शुक्रवार पति ने भेजे हुए पैसे मिले। यह देख परिवार सदस्य ताने मारने लगे।
जेठ जेठानी के पुत्र कहने लगे, अब तो काकी के लिए पत्र आने लगे पैसे मिलने लगे। अब काकी की खातिरदारी बढ़ जाएगी।
वह कहने लगी ये पैसा पुरे परिवार के लिए है। मुझे पैसो की जरुरत नहीं है। इस तरह आँखों में आंसू के साथ माताजी के मंदिर गयी। माताजी के चरणों में गिरगयी और रोने लगी। और कहने लगी माता मुझे ये पैसे नहीं चाहिए। में आपसे कहा पैसे मांगे थे। मुझे तो मेरा सुहाग चाहिए। में मेरे पति का दर्शन करना चाहती हु।
हदय से निकले हुए प्रेम भरे शब्द से माता जी प्रसन्न हो गयी और कहने लगी जा बेटा तेरा पति जल्द ही आएगा। ये सुनकर मन ही मन खुश हो कर घर चली गयी और अपने काम करने लगी।
उधर उनका पति अपने धंधे के काम में व्यस्त था। उसे तो पत्नी को याद करने की भी फुरशत नहीं थी। माता जी ने भोलीभाली पुत्री को वचन दिया था।
पति के स्वप्न में माताजी
माताजी स्वयं उस बुढ़िया के बेटे के स्वप्न गए और कहने लगे। ओ साहूकार के बेटे सो गया क्या ?
वह बोला – माताजी आज्ञा दीजिये की कारण आपको आना पड़ा।
माताजी ने कहा – तेरा परिवार घर – बार कुछ नहीं है क्या ?
वह बोला – सबकुछ है, माता है पिता है एक सुशिल पत्नी है।
माताजी ने कहा – है पुत्र तू यहाँ कितना धन इकठ्ठा करेगा। तेरी पत्नी परेशान है। दुखी है। तेरे परिवार के सभी सदस्य उसे हैरान करते है। वह तेरे लिए जिन्दा है पर यूजे तो उसकी कोई चिंता ही नहीं है।
उसने कहा – है माताजी में उसके पास जाना चाहता हु। पर ये इतना बड़ा धंधे की लेन देन कब पूरी होगी। कितने के जमा है कितने के उधार है। ये सब ऐसे छोड़कर कैसे जाऊ।
माताजी ने कहा – चिंता न कर में जैसा कहती हु वैसा कर। सुबह में जल्दी उठकर स्नान करके संतोषी माता का नाम ले। घी का दीपक जला पूंजन अर्चन कर और नमस्कार कर। बादमे तेरी दुकान का काम काज चालू कर। तेरा सम्पूर्ण काम हो जायेगा।
यह सुनकर सुबह जल्दी उठकर वही किया जो सपने में माताजी ने कहा था। बादमे वो दुकान जाके बेथ गया। देखते ही देखते लेण देन ख़तम होने लगी। खरीदार आने लगे दुकान का सामान नकद में बिकने लगा। साम होते होते दुकान का सामान खत्म हो गया। रुपियो का ढेर लग गया। अचानक ये चमत्कार देख कर वो मन्त्रमुघ्ध हो गया। मन ही मन माताजी का शुक्रिया अदा करने लगा।
घर जाने की इच्छा से धन इकठ्ठा किया। कुछ गहने कपडे ख़रीदे और घर के लिए निकल पड़ा।
पुत्र की घर वापसी
करीब बारा सालो के बाद बुढ़िया का पुत्र घर वापस आ रहा था। उसकी पत्नी उसका इंतजार कर रही थी।
हर रोज की तरह पत्नी जंगल में लकड़ी लेने जाती है। वापस संतोषी माता के मंदिर में दर्शन कर ठहरती है। उसने देखा की दूर एक धूल की दमरी उड़ती है। उसने माता जी से पूछा माँ ये धूल क्यों उड़ रही है।
माताजी ने कहा, बेटा तेरा इंतजार पूरा हुआ। ये सामने तेरा पति आ रहा है। में तुजे जैसा कहु वैसा कर। तू जो लकड़ी लायी है उसके तीन बोझ बना। एक मेरे मंदिर में रख दूसरा नदी किनारे और तीसरा तू घर लेके जा।
तेरा पति यहाँ रुकेगा। वो लकड़ी का गठ्ठा देख मोह उत्पन्न होगा। फिर वो अपनी माँ से मिलने जायेगा तब तू लकड़ी का एक गठ्ठा लेके घर जाना। चौक में लकड़ी डाल कर आवाज लगाना। सासुजी ये लकड़ियों का गठ्ठर लो। रोज की तरह भूसे की रोटी दो। टूटे हुए नारियल में पानी दो। और पूछना ये मेहमान कौन आया है।
आगे ठीक वैसा ही हुआ मुसाफिर आया। लकड़ी की लठ्ठी देख खाना पकाया, विश्राम किया और बादमे परिवार को जाके मिला।
उसी वक्त उसकी पत्नी चौक में पहोची। लकड़ी का गट्टर सर से उतरा और बोली सासुमा ओ सासुमा ये लकड़ियों की गठ्ठर लो। भूसे की सुखी रोटी दो। टूटे हुए नारियल में पानी दो। आज मेहमान कौन आया है।
यह सुनकर उनकी सासु बहार आती है। बहु को देख बोलती है है बहु तू ऐसा क्यों करती है। तेरा पति ही तो आया है। तू घरमे आ भोजन कर गहने – कपडे पहन। यह सुनकर उसका पति बहार आया। निशानी के रूप में दी हुई अंगूठी देख वो बोला माँ ये कौन है।
माँ बोली – बेटा ये तेरी बहु है। तू जबसे गया है कोई काम नहीं करती। बस इधर उधर भटकती रहती है। और दिन में चार बार खाना खाती है।
पुत्र बोला – ठीक है माँ मेने सबकुछ देखा। मेने आपको भी देखा और उनको भी देखा। अब आप मुझे दूसरे घर की चावी दो।
माता बोली – ठीक है बेटा जैसी तेरी मरजी।
दूसरे मकान की तीसरी मंज़िल पे सामान रखा। सामान को सही तरीके से जमाया। दोनों थाट मात में रहने लगे।
व्रत का उद्यापन
इतने में शुक्रवार आया व्रत का उद्यापन करना था। सभी प्रकार की तैयारी की गयी। माताजी का पूजन किया कथा सुनी। जेठानी के बच्चो को भोजन के लिए बुलाया। बच्चो को जैसे सिखाया गया था वैसे ही किया।
भोजन के बाद वो खटाई मांगने लगे। बच्चो की काकी ने कहा आज खटाई नहीं खा सकते इसीलिए आपको नहीं मिलेगी।
बच्चो ने पैसे मांगे अपनी काकी ने उन्हें पैसे दिए। उध्यापन पूरा न हो ऐसे इरादे से बच्चो ने खटाई खरीदी और खाई। भोली भाली बहु कुछ समज न पायी।
अद्यापन अधूरा रहने के कारन माताजी का क्रोप हुआ। राजा के सैनिक आये और उसके पति को ले गए। यह देख वो भागती हुई मंदिर गयी। माताजी को प्रणाम किया और कहा माँ मेरी कोई गलती हुए हो तो माफ़ करना।
माताजी ने कहा – तूने अद्यापन ठीक से नहीं किया है। अद्यापन का भंग किया है।
वह बोली – माता मेरी गलती के लिए क्षमा करे। ये जो भी हुआ है मेरी इच्छा के विपरीत हुआ है। मेने पैसे भोलापन में दिए थे। बच्चे खटाई लेंगे मुझे नहीं मालूम था। कृपा करके मुझे माफ़ करे में फिरसे उद्यापन करुँगी।
माताजी ने कहा ठीक है अब ध्यान रखना। ऐसी कोई गलती न करना।
वह बोली – ठीक है माँ अब कोई गलती नहीं होगी। पति के लिए परेशान पुत्री को माता ने कहा तू घर जा रास्ते में तुजे तेरा पति मिलेगा।
यह सुनकर वह घर की तरफ जाने लगी। रास्ते में उनका पति मिला। उसको पूछने लगी क्या हुआ था ? राजा ने आपको क्यों बुलाया था ?
उसके पति ने कहा राजा ने मिलने बुलाया था। और जिस धन को लाया हु उसके टैक्स भरने हेतु बुलाया था।
वह बोली – जो भी हुआ भला हुआ। चलो घर चलते है।
थोड़े दिनों के बाद फिरसे शुक्रवार आया। उसने फिरसे उद्यापन किया। फिरसे अपने जेठ जेठानी के बच्चो को भोजन के लिए बुलाया। पर जैसा उनको शिखाया वैसा ही उन्होंने खटाई मांगी। इस बार उनको साफ मना कर दिया।
उनकी जगह ब्राह्मण के बच्चो को भोजन के लिए बुलाया। प्रेम से भोजन कराया। सब को एक फल दिया और अपनी शक्ति के अनुशार दक्षिणा दी जिसे माताजी अति प्रसन्न हुई।
संतोषी माता के व्रत से फल प्राप्ति- Benifit of Santoshi Mata Vrat Katha
संतोषी माता का पुंजन हररोज करने लगी। माता जी की कृपा हुई वह गर्भवती हुई और नौ महीने बाद एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। सम्पूर्ण सुख प्राप्त कर वो हर रोज माताजी के दर्शन के लिए मंदिर जाने लगी।
एक दिन माताजी ने सोचा ये प्रतिदिन यहाँ आती है। आज में ही उससे मिलने जाती हु। यह सोचकर एक भयंकर रूप धारण करके माताजी उनके घर पहुंचे। मुख पे गुड़ और चने लगाए हुए थे। बड़े होठ थे, मुंख में मखिया गुनगुना रही थी। लम्बे बाल और बड़े दांत दिखाई देते थे।
ऐसा भयानक रूप देखकर सासुमा चिल्लाई। और कहने लगी कोई डाकिन आयी है, कोई चुड़ैल आयी है। इसे कोई भगाओ, ये सबको खा जाएगी। सब बारी दरवाजे बंध कर दो।
धर्म परायण बहु अपने धर की बाल्कनी से देख रही थी। वो ख़ुशी से जुम उठी। उसने तुरंत माताजी को पहचान लिया। वो अपने बेटे को दूध पिता हटाके माताजी के पास दौड़ती आयी।
ये देख के सासुमा क्रोधित हो गए। और कहा उतावली क्यों हो रही हो ? ये कौन है ? जिसे देखके बच्चे को पटक दिया। इतने में चमत्कार हुआ चारो तरफ बच्चे ही बच्चे नजर आ रहे है।
बहु बोली है माँ ये में संतोषी माँ है। जिसका में व्रत करती हु।
यह सुनकर सभी परिवार वाले एकत्र हो गए। और माता संतोषी की क्षमा मांगने लगे। कहने लगे है माँ हम आपको पहचान नहीं सके। हम अज्ञानी है, हम मुर्ख है, हमें क्षमा करो। हमने आपके व्रत को भंग करने की कोशिश करके अपराध किया है। हमें माफ़ करो और हम पर कृपा करो।
सबकी विनती सुन माता संतोषी प्रसन्न हुए। सबको अपराध के लिए क्षमा किया। सबको आशीर्वाद दिया। माताजी ने जैसे बहु को फल दिया, बहु की मनोकामना पूर्ण की थीक उसी तरह व्रत करने वाले सबकी मनोकानमा पूर्ण करे ऐसी आशा के साथ सबको जय संतोषी माता।
संतोषी माता की आरती श्री हनुमान चालीसा
भगवान पशुपतिनाथ का व्रत एवं महिमा
श्री सत्यनारायण कथा सोमवार व्रत कथा
Santoshi Mata Vrat Katha की यहाँ समाप्ति होती है। कथा के बाद माता संतोषी की आरती की जाती है।
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