सत्य स्वरुप भगवान विष्णुजी की कथा विश्व के हिन्दू धर्म में मानने वाले लोगो में सबसे प्रचलित है। इस कथा में भगवान सत्यनारायण का व्रत के साथ पुंजन किया जाता है। सत्यनराय कथा (Satyanarayan vrat katha) मनुष्य के उद्धार के लिए है। सांसारिक जीवन में सुख शांति से लेकर मोक्ष प्राप्ति के परम सुख की प्राप्ति होती है।
दीर्धदृष्टि से देखा जाये तो ये संसार सत्य पर ही टिका हुआ है। सत्य ही मानवजीवन का उत्तम धर्म है। सत्य ही मानव जीवन का ज्ञान है। सत्य ही नारायण है और नारायण ही सत्य है। सत्य के ऊपर न कोई धर्म है या न कोई कर्म। सत्य के उस पार सिर्फ अंधेरा है।
श्री सत्यनारायण कथा – Satyanaratan katha in Hindi
श्री हरी सत्यनारायण का व्रत धर्म और ज्ञान का समन्वय है। ये व्रत स्वयं भगवान नारायण ने अपने मुखारविंद से महर्षि नारदजी को बताया था।
सनातन हिन्दू धर्म में ये परम्परा है की, किसी भी योग्य काम करने से पहले विग्नहर्ता गणेश का पूंजन किया जाता है।
गणपति गजानन के साथ उनकी पत्नी रिद्धि सिद्धि का भी पूंजन किया जाता है।
इसीलिए कथा शरू करने से पहले विग्न हर्ता गणेश का पूजन करना चाहिए। जो ब्राह्मण हमें कथा सुनाते अक्षर वो विधिवत ही पूंजन करते है।
कथा श्रवण के समय श्रोता जनो को भगवन सत्यनारायण का ध्यान लगाना चाहिए।
सत्यनारायण कथा पहला अध्याय – Satyanarayan Vrat Katha First Chapter
एक बार ऋषिमुनियों ने महर्षि सूत से पूछा, है प्रभु इस कलयुग में वेद, विद्या और ज्ञान रहित मानव को प्रभु भक्ति किस तरह मिल सकती है ? मनुष्य को सुख समृद्धि और ऐश्वर्य कैसे मिल सकता है ?
पृथ्वीलोक से पर परलोक में आत्मा को सदगति मिले ऐसा कोई सरल उपाय बताईये। कोई ऐसा व्रत कोई ऐसा तप बताईये जिसे करने से मनुष्य मनवांछित फल मिल सके और पुण्य की प्राप्ति हो सके।
प्रखर विद्वान् और शास्त्रों के जानकर श्री सूत जी ने कहा, है ब्राह्मणो में पूजनीय ऋषिमुनियों, आप सभी ने मनुष्यो के उद्धार की बात की है। प्राणी के हित की बात की है इसीलिए, में आपको एक उत्तम व्रत बता रहा हु। इस व्रत से मनुष्य की सभी मनोकामना पूर्ण होगी। ये व्रत स्वयं भगवान विष्णु ने मुनि श्रेष्ठ नारद जी से कहा था।
एक बार नारद जी आशा भरे मन से भगवान विष्णु जी के पास गये। तल्लीन होके भगवान विष्णु स्तुति की। अत्यंत व्याकुरता से की गयी स्तुति सुनने के बाद श्री विष्णु जी ने कहा, है मुनि श्रेष्ठ नारद आप किस प्रयोजन से यहाँ पधारे है ? आपके मन में क्या है ? और आप क्या चाहते है ?
योगिराज नारद जी ने कहा है जगत विधाता आप सर्व शक्ति से पूर्ण है। प्रभु में पृथ्वीलोक का ब्रह्मण करके आया हु। मृत्युलोक में अनेक योनियों से उत्पन्न हुए मनुष्य अपने पाप कर्मो के कारण दुःखी है।
मनुष्य लोक के दुखो के निवारण हेतु आप कोई सरल उपाय बताये।
मानव जाती के कल्याण हेतु आप हम पर कृपा करे।
अलंकारों से सुशोभित, शंख, चक्र गदा धारी भगवान विष्णु महर्षि नारद की बात से प्रसन्न हुए और कहा, है मुनिश्रेष्ठ नारद मानव जाती के उध्दार के लिए आपके विचार उत्तम है। संसार सागर पार करने हेतु मनुष्यो के कल्याण के लिए अपने बहुत जरुरी बात पूछी है।
में आज मनुष्य को शीघ्र ही फल की प्राप्ति हो ऐसा एक व्रत सुनाता हु। ये व्रत स्वर्ग लोग एवं मृत्युलोग में सबसे उत्तम है और साथ में दुर्लभ भी है। मनुष्य को अथाग पुर्ण्य देने वाला मोह-माया एवं दुःख दर्द दूर करने वाला ये व्रत है।
आपकी इच्छाशक्ति एवम आपके स्नेह के कारण में आपको कहता हु। सत्यनारायण भगवान का ये व्रत संपूर्ण विधिविधान से किया जाये तो शीग्र ही इसका फल मिलता है, और सभी मनोकामना पूर्ण होती है। मनुष्य मृत्यु के बाद मोक्षगति को प्राप्त करता है।
भगवान विष्णु के ये वचन सुनकर,नारद जी उत्सुक होके बोले प्रभु इस व्रत को कैसे किया जाता है ? इस व्रत को पहले किसने किया था ? इसका विधिविधान क्या है ? और इसे करने से क्या लाभ होता है ? ये सभी हमें विस्तार से बताने की कृपा करे।
नारद जी को सुनकर, भगवान विष्णु जी ने कहा यह सत्यनारायण का व्रत स्त्रीओ को सौभाग्य और संतान सुख देता है, मनुष्य के दुःख और पाप का नाश करता है। शोक दूर करके जीवन में सुख और समृद्धि प्रदान करता है। और जीवन के सभी युध्धो में विजय बनाने वाला है।
सम्पूर्ण श्रद्धा एवम भक्ति भाव के साथ इस व्रत को करना चाहिए।
अध्यात्म में लीन होकर धर्म परायण भाव से बंन्धुओ और ब्राह्मण के साथ सत्यनारायण का व्रत (Satyanarayan vrat katha) करना चाहिए।इस व्रत में श्रद्धा और विश्वास के साथ समर्पण भाव से भगवान सत्य नारायण की पुंजा करे।
भोजन के लिए उत्तम माने गये पदार्थ को प्रसाद के रूप में अर्पण करे। केला, सेब, अनार जैसे फल के साथ में घी, दूध और गेहू का आंटा। यदि गेहू का आटा नहीं है तो उसके स्थान पे साठी का आटा ले साथ में गुड़ या शक्कर ले। ये सभी अरोग ने योग्य सामग्री मिलाके प्रसाद तैयार करे। इस नैवेध भगवान श्री हरी के चरणों में भोग लगाए।
विश्वका कल्याण करने वाले इस सत्यनारायण के व्रत में पूजन के बाद ब्राह्मणो, मित्रबन्धुओ के साथ भोजन करे।धर्म परायण हो कर भजन कीर्तन करे भक्तिमय वातावरण में लीन रहे।
इस प्रकार से सत्यनारायण भगवान का व्रत करने से मनुष्य की सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
इस कलियुग में सुख शांति और समृद्धि के साथ मोक्षगति प्राप्त करने के लिए ये सबसे आसान और उत्तम उपाय है।
श्री सत्यनारायण व्रत कथा (( Satyanarayan vrat katha) का पहला अध्याय संपूर्ण।
सत्यनारायण व्रत कथा दूसरा अध्याय – Satyanarayan Vrat Katha Second Chapter
सूतजी बोले – है ऋषि गण ! पूर्वे समय में भगवानसत्य नारायण का व्रत जिसने रखा था में उसका विस्तार पूर्वक वर्णन कर रहा हु, इसे आप ध्यान पूर्वक सुने।
काशी नामकी सुन्दर नगरी में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वो अत्यंत निर्धन था।
भूख और प्यास से परेशान होकर प्रतिदिन वो धरती पे घूमता रहता था। दुखी ब्राह्मण को देखकर स्वयं श्री हरी ने वृद्ध ब्राह्मण का वेश धारण किया और उसके पास जाकर उसे सन्मान से पूछा, हररोज आप पृथ्वी पे दुखी होके क्यों भटकते हो। आप मुझे बताओ में सुनना चाहता हु।
गरीब ब्राह्मण ने उत्तर दिया, मेरेपास धन धान्य नहीं है। में अत्यंत गरीब हु। भिक्षा के हेतु से में पृथ्वी पर घूमता हु। यदि मेरी दरिद्रता दूर करने का कोई उपाय आपके पास है तो कृपा करके मुझे बताये।
वृद्ध ब्राह्मण के रूप में आये श्री हरी ने कहा, है ब्राह्मण पुत्र सत्यनारायण का व्रत दरिद्रता दूर करने वाला व्रत है। भगवान विष्णु के इस व्रत से अद्भुत फल मिलता है। मनुष्य के सभी दुःख दूर करने के लिए ये उत्तम व्रत है। तुम ये व्रत करो और सत्यनारायण देव का पूजन करो।
निर्धन ब्राह्मण को व्रत का पूरा विधि विधान कहकर वृद्ध ब्राह्मण के रूप में आये भगवान सत्य नारायण अंतर्ध्यान हो गए।
सत्यनारायण का व्रत जैसा वृद्ध ब्राह्मण ने कहा है वैसा ही करूँगा।
ये सोचते हुए ब्राह्मण पूरी रात सो न सका।
सुबह में सत्यनारायण के व्रत का संकल्प करके भूदेव भिक्षा के लिए निकल जाते है। भगवान सत्य नारायण की कृपा से दूसरे दिनों की तुलना में बहुत ज्यादा धन – धान्य प्राप्त होता है।
गरीब ब्राह्मण दूसरे ही दिन श्री हरी सत्यनारायण भगवान का व्रत करता है। अपने भाई – बांधवो के साथ पूर्ण विधि-विधान से सत्यनारायण का पूजन करके व्रत संपन्न करता है।
भगवान सत्य नारायण की कृपा से ब्राह्मण के दुःख दूर हो गए। एक निर्धन ब्राह्मण सुख, समृद्धी और सम्पति युक्त हो गया। अपने जीवन में सत्यनारायण की कृपा को देख के ब्राह्मण मंत्र मुग्ध हो गया था।
हर महीने पूर्ण विधि से वो सत्यनारायण की व्रत करने लगा। भगवान सत्यनारायण पे श्रद्धा और नियमितता ने ब्राह्मण के सभी पापो को दूर किया और मोक्षगति प्राप्त कर वैकुंठ धाम पहोचाया।
सूत जी ने कहा है ऋषि मुनियो पृथ्वीलोक में जो मनुष्य पूर्ण श्रद्धा से ये व्रत करेगा, वो इसी ब्राह्मण की तरह सुखी संपन्न होके मोक्ष गति को प्राप्त करेगा। मुनिश्रेष्ठ नारद जी ने जो कुछ कहा वो सब मेने आपको बताया। अब आगे आप क्या सुनना चाहते हो।
एकाग्र होके सुनाने वाले ऋषिओ ने सूत जी से कहा है मुनिवर हमारी उत्कंठता बढ़ रही है। हम पूर्ण श्रद्धा और भाव से व्रत करना चाहते है। आप हमें आगे बताये की उस ब्राह्मण से जानकर किसने ये व्रत किया। और व्रत करने वाले को क्या लाभ हुआ।
सूत जी बोले,
है ऋषिमुनिओ मनुष्य लोक में जिसने ये व्रत किया ये सब में विस्तार से आपको बता रहा हु। आप ध्यान से सुने।
एक बार एक ब्राह्मण अपनी धन सम्पति के अनुशार सत्यनारायण का व्रत करने तैयार हुआ। अपने भाई बंधुओ के साथ भगवान सत्यनारायण का व्रत कर रहा था। उस समय बहार से एक लकड़ी काटने वाला लकड़हारा पसार हो रहा था। उसने आवाज सुनी और लकड़ी बहार रख के कुतूहल पूर्वक ब्राह्मण के घरमे गया।
वृद्ध और दुखी लकड़हारा ने ब्राह्मण को व्रत करते देखा। व्याकुल लकड़हारा ने ब्राह्मण को प्रणांम किया और और पूछने लगा। है ब्राह्मण देव ये आप क्या कर रहे हो ? ये करने से क्या लाभ होता है ? ये कैसे किया जाता है ? मुझे विस्तार से समजाये।
ब्राह्मण ने बताया की ये, मनुष्य की सभी मनोकामना पूर्ण करने वाला सत्यनारायण का व्रत है। ये व्रत करने से भगवान सत्यनारायण प्रसन्न होते है और हमारे सभी दुःख दूर होते है। भगवान श्री हरी की कृपा से ही मेरे घर में सुख समृद्धि की वृद्धि हुयी है।
जलपान और प्रसाद लेके लकड़हारा अपने काम के लिए निकल गया। मन ही मन प्रसन्न हुआ व्रत के बारेमे सोचने लगा। उसने संकल्प किया की आज इस लकड़ी को बेचके जो भी धन मिलेगा उस धन से भगवान सत्यनारायण का व्रत करूँगा।
इस प्रकार का विचार करके सर पे लकड़ी लेके अपने काम के लिए निकल गया।
वो जहा गया ये एक सुन्दर और समृद्ध नगर था। जहा धनवान लोग रहते थे। उस दिन रोज की तुलना में उसे लकड़ी के दाम कही ज्यादा मिला।
एक थका हुआ बूढ़ा आदमी प्रसन्न हो गया। अपने संकल्प के मुताबिक उसने रास्ते से ही व्रत का सामान खरीद लिया। इसमें केले, दूध, दही, घी गेहूं का आटा लेकर अपने घर पंहुचा।
अपने भाई बंधुओ को बुलाकर सम्पूर्ण विधि से व्रत किया। भगवान सत्यनारायण के ध्यान में लीन होके पूंजन किया।
इस व्रत के कारण भगवान सत्य नारायण कृपा हुई। एक निर्धन लकड़हारा धनवान हो गया। परिवार सुख और समृद्धि से संपन्न हुआ। संसार के समस्त सुख प्राप्त करके मोक्षगति के लिए वैकुंठ गया।
श्री सत्यनारायण व्रत कथा ( Satyanarayan vrat katha) का दूसरा अध्याय संपूर्ण
सत्यनारायण भगवान की कथा तीसरा अध्याय – Satyanarayan Vrat Katha Third Chapter
सूतजी बोले – है मुनिवर आप सब की सुनाने की इच्छासे में आगे की कथा कहता हु। प्राचीन समय में एक उल्कामुख नामका राजा था। राजा सर्व गुण संपन्न था। वह बुद्धिमान, जितेन्द्रिय एवम सत्यवादी था। ज्ञान से विद्वान् राजा प्रतिदिन मंदिर देव दर्शन के लिए जाता था। ब्राह्मण अवं निर्धन प्रजा को दान करके अपने धर्म का आचरण करता था।
राजा की धर्मपत्नी का मुख कमल के पुष्प समान था। शील, विनय एवं सौंदर्य के साथ पतिव्रता थी।
एक दिन भानुशाली नदी के किनारे दोनों पतिपत्नी सत्यनारायण का व्रत कर रहे थे।
उसी समय नाव से सफर कर रहा एक साधु नामका वेपारी ने ये देखा। धन धान्य से संपन्न व्यापारी राजा के पास आया और पूछने लगा, है राजन भक्तिभाव से एकचित होके आप क्या कर रहे हो? कृपाकरके आप मुझे बताईये।
राजन बोलै ! है साधु, सबकी मनोकामना पूर्ण करने वाला भगवान सत्यनारायण का व्रत कर रहा हु। ये व्रत मनुष्य को पुत्र प्राप्ति एवं धन धान्य से समृद्धी प्रदान करता है।
राजा के वचन सुनकर व्यापारी आदरपूर्वक बोला, है राजन मुझे विस्तार से बताओ। पुरे विधि विधान से में ये व्रत एवं पूजन करना चाहता हु। में निःसंतान हु। ये व्रत से मुझे अस्वश्य संतान की प्राप्ति होगी। और में और मेरी पत्नी संतान सुख प्राप्त कर सकेंगे। राजन के द्वारा व्रत का पूरा विधान सुनकर व्यापारी अपने घर गया।
साधु व्यापारी ने संतान सुख प्रदान करने वाला व्रत अपनी पत्नी लीलावती को बताया। और कहा जब मुझे संतान सुख प्राप्त होगा तब में ये व्रत करूँगा।
एक दिन पति पत्नी आनंदित सांसारिक सुख में प्रवृत हुये।
और भागवान सत्यनारायण की कृपा दृस्टि से पत्नी लीलावती गर्भवती हुई।
साधु व्यापारी और पत्नी लीलावती दोनों ये जानकर अति प्रसन्न हुए। दसवें महीने में लीलावती के गर्भ से एक सुन्दर कन्या का जन्म हुआ। माता पिता ने इस सुकन्या का नाम कलावती रखा। शुकलपक्ष के चन्द्रमा की तरह दिन प्रतिदिन कलावती बड़ी होने लगी।
एक दिन पत्नी लीलावती ने पति साधु को मधुर शब्दों में अपना संकल्प याद दिलाया। की आपने संतान सुख प्राप्त होने पर भगवान सत्यनारायण का व्रत का संकल्प लिया था। आप वो व्रत को पूर्ण कीजिये, इसके लिए ये समय योग्य है।
पति साधुने बताया की ये व्रत हम पुत्री के विवाह के समय करेंगे। इस प्रकार का अस्वासन देकर व्यापारी नगर की और चला गया।
धीरेधीरे पुत्री कलावती की उमर बढ़ने लगी। एक दिन अपनी सखियों के साथ खेलती कलावती को देखा और तुरंन्त दूत को बुलाया। विवाह के योग्य कलावती को देखकर उसके लिए योग्य वर ढूंढने को कहा।
व्यापारी साधु की आज्ञा सुनकर दूत तुरंत कंचन नामके नगर में गया। कंचन नगर से सुयोग्य, सद्गुणी और सुन्दर वणिक पुत्र को ले कर आया। वणिक पुत्र को सर्व गुण सम्पन देख कर पुत्री कलावती का विवाह कर दिया।
संकल्प के अनुशार पुत्री विवाह के समय व्रत से भगवान सत्यनारायण का पूजन करना था। दुर्भाग्य वश इस बार साधु भगवान सत्यनारायण का व्रत करना भूल गया।
संतान प्राप्ति से लेके विवाह तक अपने संकल्प से दूर रहने वाले वणिक पर प्रभु क्रोधित हुए।
और श्राप दिया की ये वणिक को अत्यंक दुःख का सामना करना पड़ेगा।
अपने व्यापर में कुशल साधु अपने जमाई को लेकर समुद्र के नजदीक रत्नसारपुर नगर गया। और अपने जमाई के साथ वेपार करने लगा। वहा से चन्द्रकेतु राजा के नगर में व्यापारी और उसके दामाद व्यापर कर रहे थे।
सत्यनारायण भगवान के श्राप के कारण व्यापारी के बुरे दिन सरु हो गए थे। एक दिन एक चोर राजा चन्द्रकेतु के महल से धन चुराकर भाग रहा था। उसके पीछे राजा के सिपाई पीछा कर रहे थे। सिपाई को पीछे देख चोर घभराया और उसने धन उसी जगह रख दिया जहा व्यापारी और उसके दामाद रहते थे।
राजा के सिपाई चोर को ढूंढते हुए आये तो उनको वहां से चोरी किया गया धन मिला। और उस धन के नजदीक वणिक और उसके दामाद थे। राजा के दूत दोनों को बांधकर राज दरबार में ले गए।
प्रसन्न होते हुए सिपाई ने कहा राजन ये दोनों चोर है। यही राज्य से धन चुराकर भाग रहे थे। आप इन दोनों को उचित दंड दे और हमें सजा की आज्ञा करे।
राजा चंद्रकेतु की आज्ञा के अनुसार दोनों को कारावास में रख दिया। भगवान सत्यनारायण के श्राप के कारण दोनों ने अपनी बात रखने की कोशिश की पर किसीने उनकी बात नहीं सुनी। व्यापर के हेतु से आया साधु और जमाई का सम्पूर्ण धन भी छीन लिया गया।
श्री हरी के श्राप से साधु का परिवार तहस-नहस हो गया। उनके घर में रखा धन चोर ले गये। पत्नी लीलावती अनेक पीड़ाओं से इधर उधर भटकने लगी। शारारिक और मानशिक रीत से दुखी कलावती अन्न की खोज में एक ब्राह्मण के घर गयी।
वहां उसने भगवान सत्यनारायण का व्रत (Satyanarayan vrat katha) होते देखा, भगवान सत्यनारायण की कथा सुनी एवं पूजन होते हुए देखा। प्रसाद ग्रहण करके अपने घर वापस लौटी।
देर से घर आयी पुत्री कलावती को देख के माता लिलवती ने पूछा !
है पुत्री तू अब तक कहा थी ? तेरे मनमे क्या विचार चल रहे है ?
पुत्री कलावती ने कहा माता में एक ब्राह्मण के घर गयी थी। वहां सर्व मनोरथ पूर्ण करने वाले भगवान सत्यनारायण की कथा सुन रही थी। वहां से प्रसाद ग्रहण करके आयी हु।
ये सुनकर वणिक पत्नी साध्वी के मनमे तुरंत विचार आया। वह सत्यनारायण का व्रत एवं पूजन की तयारी की। और अपने बन्धु-बांधवो के साथ भगवान सत्यनारायण का व्रत एवं पूजन किया।
श्रद्धा और भक्ति से भगवान सत्यनारायण से प्राथना की। अपने पति के लिए क्षमा याचना की। साथ में कारावास में बंध पति और जमाई जल्दी घर लौटने का वरदान माँगा।
लीलावती द्वारा पूर्ण श्रद्धा और भाव से किया गया पूंजन से भगवान सत्यनारायण प्रसन्न हुए।
राजा चन्द्रकेतु के सपने में आके कहा, है राजन तुम दोनों वणिक पुत्रो को छोड़ दो। उनका लिया हुआ धन वापस कर दो। ये दोनों तुम्हारे गुनहगार नहीं है। यदि अपने ये नहीं किया को आपका सर्वनाश होगा। यह कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गये।
राजा ने दूसरे दिन सुबह में अपने सभागण में ये स्वप्न की बात कही। और अपने सिपाईओ से से कहा दोनों व्यापारिओं को कारागार से मुक्त कर दो। राजा की आज्ञा से सिपाई दोनों वणिकपुत्रो को बन्धन मुक्त करके राजा के पास ले आये।
राजा चंद्रकेतु को दोनों ने नमस्कार किया। और अपने साथ जो हुआ इसकी कथनी सुनाई।
सम्पूर्ण कथनी सुनने के बाद कहा ये जो हुआ है ये आपके कर्म वश हुआ है। अब आप भय मुक्त हो, आपको डरने की जरुरत नहीं है। दोनों को आभूषण और वस्त्र पहनाके संतृस्ट किया।
पहले से दुगना धन दिया और अपने परिवार के पास प्रयाण करने को कहा। ससरा और दामाद आदरपूर्वक राजा को नमस्कार करके अपने घर की तरफ निकल गए।
श्री सत्यनारायण कथा( Satyanarayan vrat katha) तीसरा अध्याय समाप्त
श्री सत्यनारायण व्रत कथा चौथा अध्याय – Satyanarayan Vrat Katha Fourth Chapter
सूतजी ने कहा ! दोनों वणिक, व्यापारी और उनके दामाद यात्रा कर अपने नगर की और चल दिए। दोनों खुश होके जा रहे थे। भगवान सत्यनारायण ने दोनों की परीक्षा करने की जिज्ञाषा हुई।
श्री हरी एक ब्राह्मण का वेश धारण करके उन दोनों के पास पहुंचे। और उनसे प्रश्न किया है वणिक तुम्हारी नाव में क्या है ?
धन और वैभव मिलने के कारण मोहवश वणिक ने हसते हुए उत्तर दिया, है वेशधारी आपको ये पूछने की जरुरत क्या है ? क्या आप धन लेना चाहते हो ? इस नाव में ऐसा कुछ भी नहीं है। इस नौका में सूखे पत्ते और लता है।
ऐसे झूठे और कठोर वचन सुनकर भगवान सत्यनारायण क्रोधित हुए। और बोले वणिक पुत्र तुम्हारा वचन सत्य हो। ऐसा कहकर वेषधारी भगवान सत्यनारायण वहां से चलेगये। और समुद्र के किनारे जाके बैठ गये।
वेशधारी दण्डी के दूर जाने के बाद दोनों वणिक मन ही मन खुश हो रहे थे। साधु वैश्य नित्यक्रिया के बाद नाव को ऊँचे की तरफ उठते देखा। यह देखकर वह हतप्रत हो गया।
जैसा उन्होंने कहा था वैसा ही वो नाव में देख रहा था। धन की जगह पे सूखे पत्ते और लता थी। यह देख कर वो मूर्छित हो कर गिर पड़ा। अचेत हो कर साधु वणिक मन से टूट गया और शोक करने लगा।
यह देखकर वणिकपुत्र को उनके दामाद बोले आप शोक करना छोड़ दे।
ये सब वेषधारी दण्डी के श्राप के कारण हुआ है। हमें उनके पास जाना चाहिए और क्षमा याचना करनी चाहिए। ये सुनकर साधु अपने दामाद के साथ खोजते हुए दण्डी के पास पंहुचा।
उन्हें देख के प्रसन्न हुए और भक्तिभाव से प्रणाम किया। और आदरपूर्वक कहने लगा है देव, आपके सामने मेने जो कुछ भी कहा था वो सत्य नहीं था। मेने आपको जूथ कहा था। में असत्य न बोलने का अपराधी हु। है गुरुवर मुझे क्षमा करे। शोकातुर हो कर वारंवार विनती करने लगा।
साधु वैश्य को इस तरह करगरते हुए देख दण्डी भगवान बोले है मुर्ख! अपने शोक को दूर कर और मेरी बात सुन। मोहमाया से मस्त असत्य वचन एवं मेरी पूंजा अर्चना से दूर रहने के कारण आपको दुःख झेलने पड़े है। मेरी ही इच्छा से आपको दुःख का सामना करना पड़ा है।
साधु वैश्य बोला है प्रभु मुझे क्षमा कर दो, आपकी कृपा अपरम्पार है। स्वयं ब्रह्मा भी आपकी माया से मोहित हो जाते है और आपके रूप को नहीं जान पाते। में एक मानव हु, कृपा करके मेरे अपराध के लिए मुझे क्षमा करे।
है भगवान में मेरी शक्ति के अनुशार आपका पूंजन करूँगा। भक्तिभाव पूर्वक आपका व्रत करूँगा। जो अपराध मेने किया है उसे में फिर नहीं करूँगा।
मुझ पे कृपा करे,मेरी रक्षा करे और मेरा खोया हुआ धन मुझे वापस दो।
वणिक पुत्र साधु के भावपूर्ण और पश्च्याताप वाले वचन से श्री हरी प्रसन्न हुए। दोनों को वरदान और आशीर्वाद देके अंतरध्यान हो गये।
साधु और उनके जमाई घरलौटने की इच्छा से नाव पर आये। उन्होंने देखा तो नाव पहले की तरह धन, धान्य से भरी हुई थी। यह देख कर दोनों प्रसन्न हो गए। भगवान सत्यनारायण की कृपा का अहसास होने लगा। उन्होंने सत्यनारायण भगवान का पूंजन किया और अपने घर की तरफ प्रस्थान किया।
अपने नगर के नजदीक पहोचते ही घर सन्देश पहोचाया। एक दूत को घर भेजा और कहा आप दोनों के पति धन धान्य लेकर बहुत जल्दी घर पहोच रहे है।
दूत के समाचार से आनंद विभोर हो कर भगवान सत्यनारायण की पूजा की। और पुत्री कलावती से कहा में अपने पति साधु से मिलने जाती हु। तू ये सब पूर्ण करके आ जाना।
पुत्री कलावती भी अपने पति के दर्शन की इच्छासे प्रसाद लिए बगैर निकल गयी।
पूंजा और प्रसाद की अवज्ञा देखकर भगवान सत्य नारायण कोपायमान हुए।
साधु वणिक की नाव और नाव में सवार सभी अदृश्य हो गये। पति के दर्शन करने आयी कलावती पति को न देख के निराश हो गयी। अपने स्वजनों के साथ विलाप करने लगे और शोकमग्न होकर धरती पर गिर पड़ी।
नाव का अदृश्य होना और पुत्री को बेहद दुखी देखकर साधु आश्चर्य चकित हो गया। वो तुरंत समज गया की जरूर मुझसे या मेरे परिवार से कोई गलती हुई है।
ये स्थिति देख साधु बोला है नारायण आपकी कृपा अपरंपार है। मुझ से या मेरे परिवार से कोई गलती हुई हो तो हमें क्षमा करे। विनम्र पूर्वक वारंवार प्रणाम करता रहा और आयी हुई आपत्ति को दूर करने के लिए प्राथना करता रहा था।
भक्तवत्सल भगवान सत्यनारायण प्रसन्न हुए। आकशवाणी हुई ! है साधु, तेरी पुत्री मेरे प्रसाद एवं व्रत की अवज्ञा करके आयी है। पति के दर्शन करने हेतु उसने मेरा अपमान किया था। इसीलिए आपकी पुत्री कलावती का पति नाव के साथ अदृश्य हो गया है।
कन्या कलावती कथा पूर्ण कर प्रसाद ग्रहण करके आएगी तो जरूर उनके पति के दर्शन कर पायेगी। पुत्री कलावती अपने पति से अवश्य मिल पायेगी। ये आकाशवाणी सुनकर कलावती प्रसाद ग्रहण करके वापस आके पति के दर्शन करती है।
साधु पूरा परिवार के साथ घर प्रयाण करता है। सम्पूर्ण विधि से भगवान सत्यनारायण का व्रत करता है। भक्तिभाव पूर्वक श्री हरी का पूजन करता है। और अंत काल में मोक्षगति को प्राप्त करता है।
श्री सत्यनारायण ( Satyanarayan vrat katha)चौथा अध्याय समाप्त
भगवान सत्यनारायण कथा पांचवा अध्याय- Satyanarayan Vrat Katha Fifth Chapter
सूतजी कहा है श्रेष्ठ मुनिओ ! भगवान सत्यनारायण व्रत से जुडी एक और कथा आपको सुनाता हु। आप सभी इसे ध्यान से सुने।
एक तुंगध्वज नामका एक राजा था। ये हमेशा अपनी प्रजा के पालन हेतु तैयार रहता था। एक दिन शिकार करने हेतु एक दिन वन में गया। अनेक वन्य प्राणियों का मारकर एक वृक्ष के निचे आया।
उसने देखा की गाय चराने वाले गोवाळ पूर्ण भाव से भगवान सत्यनारायण का व्रत कर रहे थे। गोवाळ अपने बन्धु और परिवार के साथ भक्ति भाव से कथा का श्रवण कर रहे थे।
ये देखने के बाद भी अहंकार के वश राजा वहां नहीं गया। ना ही राजा ने श्री हरी को प्रणाम किया। कथा की समाप्ति के बाद गोवाळ ने प्रसाद दिया। राजा ने उसका भी अनादर किया और प्रसाद लिए वगेर अपने नगर चला गया।
प्रसाद का त्याग करना राजा को महंगा पड़ा। जब नगर पहुचकर देखता है तो सब कुछ बदल गया था। उसका राज्य नष्ट हो गया, धन-धान्य ख़तम हो गए। सो पुत्रो के पिता राजा जैसे पुत्र विहूणा हो गया।
अपनी दुर्दशा देख के तुंगध्वज समज गया। भगवान सत्यनारायण के व्रत का अनादर हेतु ये हुआ है। वो तुरंत वापस गाय चराने वाले गोवालों के पास गए।
भगवान सत्यनारायण से क्षमा याचना की और नमस्कार किया। श्री हरीका पूजन किया, आराधना की और प्रसाद लिया। परम कृपालु परमांत्मा की कृपा से सबकुछ पहले जैसा हो गया। धन-दौलत और सुख समृद्धि से जीवन पसार किया और अंत में स्वर्गवास गया।
सूतजी ने कहा,
है ऋषिवर भगवान सत्यव्रत की कृपा अपरंपार है। उनका व्रत उत्तम और दुर्लभ है। जो मनुष्य सम्पूर्ण श्रद्धा और भक्तिभाव से व्रत करता है, वो परम सुख को प्राप्त करता है।
निर्धन को धन एवं निःसंतान को संतान सुख की प्राप्ति होती है। मनुष्य अपने दुखो को दूर कर सकता है। अपनी सभी मनोकामना पूर्ण कर सकता है। संसार सागर भयमुक्त होकर पार कर सकता है। और अंत समय में वैकुंठधाम को प्राप्त करता है। इसमें किसी भी प्रकार का संदेह नहीं है।
कलियुग में भगवान सत्यनारायण का ये व्रत विशेष फलदायी है। कलयुग में भागवान विष्णु को कोई सत्यव्रत कहेगा, कोई काल कहेगा, कोई ईश्वर कहेगा तो कोई सत्यनारायण कहेगा। इस कलियुग में नित्य पूजा पाठ करने वाले, श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्ण जीवन जीने वाले सभी मनुष्यो का कल्याण करेंगे। भगवान सत्यनारायण की कथा (Satyanarayan vrat katha) करने वाले को मन वांछित फल प्राप्त होगा।
है ब्राह्मणो ! पहले के समय में जिसने ये व्रत किया उसके दूसरे जन्म की कथा सुनाता हु।
सतानन्द नामका ब्राह्मण दूसरे जन्म में सुदामा नामका ब्राह्मण हुआ। भगवान श्री कृष्ण का ध्यान किया और अंत में मोक्ष की प्राप्ति की।
लकड़ी बेचने वाला लकड़हारा अगले जन्म में राजा हुआ और भगवान श्री राम की सेवा कर मोक्ष की प्राप्ति की।
वणिक साधु अगले जन्म में मोरध्वज नामका राजा हुआ। उसने अपने पुत्र को चिर कर भगवान विष्णु को देह दान दिया। जिसके कारण उसे भी मोक्ष की प्राप्ति हुई।
उल्कामुख नामका राजा दूसरे जन्म में राजा दशरथब हुए। रंगनाथजी की कृपा से वैकुंठ धाम गए।
राजा तुंगध्वज अगले जन्म में स्वयंभू मनु हुए। अपने कार्यो और अनुष्ठान के कारण वैकुंठ में गए।
गोपालो को दूसरे जन्म में व्रजमंडल में स्थान मिला। उन्होंने राक्षशो का संहार किया। और मोक्ष गति को प्राप्त किया।
श्री सत्यनारायण कथा ( Satyanarayan vrat katha) पांचवा अध्याय सम्पूर्णम
सत्यनारायण की कथा से क्या लाभ होता है ?-Benifit of Satyanarayan vrat katha
भगवान सत्यनारायण की कथा से अनगिनत लाभ है। हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले हर मनुष्य अपने घर में ये कथा करवाना सौभाग्य समझता है। संपूर्ण भारत ही नहीं दुनिया में इस कथा आस्थावान लोग करते है।
यह कथा आमतौर पर घर में अच्छे प्रसंग के समय की जाती है। पूनम या एकादशी की तिथि या घरमे में किसी का जन्मदिन या कोई सुबह अवशर पैर यह काठ की जाती है।
- सत्यनारायण के व्रत से मनुष्य वास्तविक जीवन में सत्य को अपना के जीवन का आनंद ले सकता है। मनुष्य सत्यनिष्ठा से जीवन जीता है तो उसे पृथ्वी भी स्वर्ग समान लगती है।
- हिन्दुधर्म शास्त्र स्कंध पुराण में इस कथा का उल्लेख किया गया है। यह कथा मनुष्य को सत्य के राह पर चलने की प्रेरणा देती है। सत्यनिष्ठां से कोई मनुष्य सत्यनारायण का व्रत करता है तो उसे मनवांछित फल मिलता है।
- तन, मन धन से की गयी सत्यनारायण की कथा मनुष्य को धन धान्य से परिपूर्ण कर देती है। यह कथा घरमे अन्न धन एवं लक्ष्मी का आशीष लाती है।
- पूर्ण श्रद्धा से की गयी कथा से सुख, समृद्धि, वैभव, यश, कीर्ति, पराक्रम, सम्पति और ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
- सत्यनारायण की इस कथा से पूर्वजो की आत्मा को भी शांति मिलती है। और पारिवारिक कलह दूर होता है।
- इस व्रत से मनुष्य के सभी कष्ट दूर होते है। दुःख एवं मनुष्य के पापो को नष्ट करता है एवं अकाल मृत्यु से रक्षा मिलती है।
- सत्यनारायण की इस कथा को सुनाने मात्रा से ही पुण्य की प्राप्ति होती है।
- आज के इस कलयुग में पाप मोह और माया जाल से बचना हो तो यह व्रत जरूर करे।
सत्यनारायण पूजा के लिये सामग्री-
1 – भगवान सत्य नारायण विष्णु जी की मूर्ति
2 – नारियल
3 – बाजठ – लकड़ी का छोटा टेबल जिसपे तस्वीर रख सके
4 – अगरबत्ती
5 – अबिल, गुलाल, कंकु, चन्दन
6 – शिरा का प्रसाद
7- fruit – ऋतुफल
7 – कपूर
8 – दीपक
9 – फूल
9 – फूल माला
10 – पान के पत्ते
11 – लालवस्त्र
12 – चुनरी
13 – हल्दी
14 – कलश (स्वच्छ पानी भरा हुआ)
15 – हल्दी मिलाया हुआ पीला चावल
16 – माता जी के लिए चुंदड़ी
17 – सुपारी
18 – केले के पत्ते वाली दाल
19 – आसोपालव
20 – पंचामृत (शहद, दूध, दही, शक्कर, घी)
21 – पुलसि पान
22 – दूर्वा
23 – रुई
24- गंगाजल
भगवान पशुपतिनाथ का व्रत एवं महिमा
भगवान सत्यनारायण की कथा ( Satyanarayan vrat katha)का सनातन हिन्दू धर्म खास महत्व है। आशा करता हु भगवान सत्यनारायण सबका कल्याण करे।