सनातन हिन्दू धर्म में सावन मास को सबसे पवित्र माना जाता है। सावन मास में भगवन शिव की पूंजा का विशेष महत्व है। सावन मास में शिवालय भक्तो से भरे हुए रहते है। भक्त जन सावन मास में सोमवार का व्रत रखते है। कही लोग सोलह सोमवार के व्रत का भी प्रारम्भ करते है। उस दिन सोमवार को व्रत एवं कथा होती है। जिसे Sawan somvar vrat katha कहा जाता है।
सावन सोमवार – Somvar ki Vrat Katha
कब से शुरू होता है सावन मास ?
हिन्दू धर्म के कैलेंडर के अनुशार सावन मास साल का पांच मा महीना है। इस साल 2021 में सावन महीना तारीख के हिसाब से देखे तो जुलाई महीने में शुरू हो रहा है।
जुलाई की 25 तारीख को सावन महीने की शरुआत होती है। और अगस्त महीने की 22 तारीख के दिन पूर्णिमा के दिन सावन महीने की समाप्ति होती है।
सावन के सोमवार
सावन के सोमवार का बहुत महत्व है। भगवान भोले नाथ के भक्त सावन के सोमवार का इंतजार करते है। और सोमवार कब है ये जानने के लिए भी उत्सुक रहते है। इस साल 2022 में सावन महीने के चार सोमवार है।
इस साल सावन का तारीख के हिसाब से
सावन महीने की शरुआत 14 जुलाई को हो रही है।
पहला सोमवार – जुलाई महीने की 18 तारीख को है। याने 18 जुलाई 2022
दूसरा सोमवार – जुलाई महीने की 25 तारीख को है। याने 25 जुलाई 2022
तीसरा सोमवार – अगस्त महीने की 1 तारीख को है। याने 1 अगस्त 202
चौथा सोमवार – अगस्त महीने की 8 तारीख को है। याने 8 अगस्त 2021
12 अगस्त शुक्रवार के दिन सावन महीने का आखरी दिन है।
Solah Somvar ki Vrat Katha Mahatva – सोमवार व्रत कथा इन हिंदी
देवो के देव महादेव को भोले नाथ कहा जाता है। हमारी कोई भी मनोकामना शीघ्र पूरी करनी है तो भोलेनाथ की शरण में ही जाना चाहिए । शास्त्रों के अनुशार सभी देवो में भोलेनाथ तत्काल प्रस्सन होते है। यदि पूर्ण श्रद्धा और भक्ति भाव से उनकी आराधना की जाये।
सोमवार का दिन भगवान शंकर का दिन माना जाता है। भोलेनाथ भक्त सोमवार को व्रत करते है, शिवालय जाते है। पूर्ण श्रद्धा से भागवान शंकर को जो प्रिय है ऐसी वस्तु शिवलिंग पे चढ़ाते है। इसमें बिल्वपत्र और धतूरा के फूल का विशेष महत्व है। साथ में पानी और दूध से अभिषेक किया जाता है।
सोलह सोमवार का व्रत मनुष्य अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु रखता है। भगवन शंकर कल्याण कारी देव है। हमेशा अपने भक्तो का कल्याण करते है। सोमवार के व्रत में कोई खास विशेष पूंजन की आवश्यकता भी नहीं होती। भगवान भोलेनाथ की सच्चे मन से आराधना की जाये तो तत्क्षण लाभ होता है। सावन के सोमवार का व्रत (Sawan Somvar Vrat Katha) की कथा निचे दी गयी है। जिसका खास महत्व सावन महीने में है।
सावन सोमवार व्रत कथा – Sawan Somvar Vrat katha
एक नगर था। उसमे एक धनिक व्यापारी अपनी पत्नी के साथ रहता था। दोनों सुखी सम्पन जीवन बिता रहे थे। धन की कोई कमी नहीं थी। व्यापारी का व्यापर दूर दूर तक फैला हुआ था। नगर में व्यापारी का मान सन्मान था। नगर के सभी लोग व्यापारी का आदर करते थे।
धन सम्पति से सुखी साहूकार के जीवन में एक कमी थी। साहूकार को कोई संतान नहीं था। संतान की कमी के कारण वो हमेशा दुखी रहता था। उसके व्यापर धंधा का कोई उत्तराधिकारी नहीं था, इस बात से परेशान रहता था।
दोनों पति पत्नी धर्म परायण जीवन जी रहे थे। व्यापारी भगवान भोलेनाथ का भक्त था। पुत्र प्राप्ति की इच्छासे हर सोमवार व्रत करता था। शिवालय जाके भगवान शंकर का पूंजन करता था। शिवपार्वती के सामने घी का दीपक जलाता था। सम्पूर्ण श्रद्धा भक्ति के साथ मन को एकचित करके शिवजी का स्मरण करता था।
साहूकार की भाव पूर्ण भक्ति देख माता पार्वती प्रसन्न हुई। जग का कल्याण करने वाली माता पार्वती ने शिवजी से कहा है प्रभु इस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करो।
भगवान भोलेनाथ बोले !
मनुष्य का जीवन उसके कर्म के आधीन है। जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा फल मिलता है। अर्थात मनुष्य के जीवन में जो सुख और दुःख की प्राप्ति होती है ये उसके कर्म के कारन ही होता है।
शिवजी के वचन सुनने के बावजूद माता पार्वती अपनी बात पे लगी रही। व्यापारी की भक्ति और निति देख वो भगवान शंकर को बार-बार अनुरोध करने लगी।
सब का कल्याण करने वाली माता पार्वती के आग्रह को मान लिया। और साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। पर वरदान दने के बाद माता पार्वती जी से कहा ! में उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान देता हु पर उसका पुत्र 12 साल तक ही जीवित रहेगा। 12 साल के बाद उसकी मृत्यु होगी। शिवपार्वती का यह पूरा वार्तालाप व्यापारी को सपने में विदित हुआ।
भगवान शंकर का भक्त व्यापारी प्रभु के वरदान से प्रसन्न हुआ। पर पुत्र की आयु 12 साल ही होगी यह बात उन्हें परेशान कर रही थी। पर वो अपने कार्य से विचलित नहीं हुआ। प्रतिदिन भोलेनाथ का भजन-कीर्तन, पूंजा अर्चना करता रहा। सोमवार का व्रत भी पुरे विधि-विधान से करता रहा। कुछ ही समय के बाद उनकी पत्नी गर्भवती हुई और एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया।
कुटुम्ब परिवार के सदस्य निःसंतान घरमे पुत्र संतान से खुशिया मानाने लगे। आनंद से झूमने लगे और समारोह कर पुत्र नज्म का उत्सव मनाया। पर साहूकार इतना खुश नहीं था। उसे मालूम था की पुत्र की आयुष्य 12 का ही है, इसीलिए दुखी था।
धीरे धीरे पुत्र बड़ा होने लगा।
पुत्र की उम्र 11 साल हुई तब पिता ने पुत्र के मामा को घर बुलाया। और कहा इसे शास्त्रों का ज्ञान देना है। उसे शिक्षा प्राप्ति के लिए काशी नगर लेके जाओ।
यह कह कर मामा को पुत्र के साथ विद्या के हेतु भेज दिया। साथ में यज्ञ करने हेतु बहुत सारा धन दिया।
विद्या प्राप्ति के लिए भांजा अपने मामा के साथ काशी नगर के लिए निकल गया। रास्ते जरुरत लगे ऐसी जगह विश्राम करते। पिता की आज्ञा के अनुशार यज्ञ करते, ब्राह्मणो को भोजन के लिए आमंत्रित करते और दान दक्षिणा देके विदा करते।
इस तरह काशी नगरी की तरफ आगे बढ़ रहे थे। एक दिन एक नगर पहोचे, यहाँ पूरा नगर सजाया हुआ था। पता चला उस नगर के राजा की पुत्री का विवाह हो ने जा रहा है।
वरराजा का पिता चिंतित था क्युकी, उसका पुत्र एक आंख से काना था। वो एक ही आंख से देख सकता था। यह बात राजा ने पुत्री के पिता से छुपाई थी। वो समजता था की यदि सच्चाई का पता चल गया तो विवाह संपन्न नहीं होगा। और बारात खाली हाथ वापस जाएगी।
इतने में राजा ने इस मामा और भांजा को देखा। सुन्दर लड़के को देख कर उनके मनमे विचार आया, की लड़के को मेरे पुत्र की जगह लड़की से विवाह करा दू तो अच्छा रहेगा।
मेरी सभी समस्या का समाधान हो जायेगा। विवाह संपन्न होने के बाद उसे धन दौलत देके विदा कर दूंगा। और पुत्री राजकुमारी को घर ले आऊंगा।
वरराजा के पिता ने मामा से बात की और कहा ये विवाह सम्पन होने पर में आपको बहुत सारा धन दूंगा। धन की बात सुनकर मामा की बुद्धि भ्रष्ट हो गयी थी।
मामा तैयार हो गए ,
उन्होंने भांजे को वरराजा के कपडे पहना दिए और विवाह संपन्न कर दिया। राजकुमारी के पिता ने धन दौलत के साथ पुत्री को विदा किया।
सत्य के रास्ते पे चलने वाले माता पिता की संतान को असत्य गवारा नहीं था। भांजा मन ही मन में दुखी हो रहा था। उसका मन छल करना चाहता नहीं था। इसीलिए विवाह के समय उसने राजकुमारी की चुंदड़ी पे लिख दिया।
आपका सम्पूर्ण विवाह मेरे साथ संपन्न हुआ है। आप जिसके साथ जा रहे हो वो राजा का लड़का एक आंख से काना है। में तो विद्या ग्रहण करने हेतु कशी नगरी जा रहा हु
विवाह के बाद विदाई हुई राजकुमारी ने अपनी चुंदड़ी पे ये पढ़ा तो स्तब्ध हो गयी। उसे अहसास हो गया की मेरे साथ छल हुआ है। उसने राजकुमार के साथ जमे से मना कर दिया।
राजकुमारी के पिता ने सब बात सुनी तो उन्होंने भी अपनी लड़की भेजने से इन्कार कर दिया।
उधर मामा और भांजा काशी नगर पहुंच गए।
भांजा ने गुरुकुल में विद्या ग्रहण करना चालू किया। धीरे धीरे शास्त्रों का धर्मज्ञान बढ़ने लगा था। भांजा की उम्र 12 साल हुई। इसकी ख़ुशी में एक मामा द्वारा बड़े यज्ञ का आयोजन किया गया। यज्ञ समाप्ति के बाद हर समय की तरह ब्राह्मणो को भोजन कराया। और बहुत सारे वस्र और अन्न का दान किया।
यज्ञ समाप्ति के बाद भांजा, तबियत ठीक नहीं है कह कर शयन कक्ष में जाकर सो गया। भगवान शिव के वरदान के अनुशार उसकी आयु १२ साल ही थी। उसकी प्राण चले गए। वो मृत अवस्था में शयन कक्ष में पड़ा था। कुछ समय बाद मामा ने जाके देखा और कल्पांत करने लगे। रोने लगे, विलाप करने लगे।
ये सब भगवान शिव देख रहे थे। मामा को इस तरह कल्पांत करते देख माता पार्वती सहन नहीं कर पाए। माता ने तुरंत कहा प्रभु इसका कष्ट दूर करो। इसका आक्रंद सहन करने योग्य नहीं है।
भगवान शंकर ने माता पार्वती जी से कहा, है देवी ये वही पुत्र है जिसकी आयु 12 साल थी। जिस व्यापारी की संतान नहीं थी और आपकी विनती से उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान मिला था।
सोमवार की व्रत कथा
माता पार्वती ने एक बार फिर भगवान से इस परिवार पर कृपा करने की बिनती की। और कहा की आपमें सतत लीन रहने वाले इस लड़के के माता पिता यह खबर सुनकर जीवित नहीं रह पाएंगे। है प्राणनाथ इसे जीवन दान दो।
दया और करुणा के सागर भगवान भोले नाथ ने माता की विनती सुनी और उसे जीवित कर दिया।
विद्या ग्रहण का समय समाप्त करने के बाद विदाई के लये तैयार हुए। मामा और भांजा दोनों अपने नगर की तरफ निकल गए।
रास्ते में वो नगर आया जहा राजकुमार बनके विवाह हुआ था। यहाँ भी यज्ञ का आयोजन किया ब्रह्मणो को भोजन कराया और दक्षिणा प्रदान की। नगर वालो ने यह देखा और वहां से पसार हो रहे राजा ने भी यह देखा।
राजा ने लड़के और उसके मामा को पहचान लिया। यज्ञ समाप्ति के बाद दोनों को राजमहल ले गया। आदर पूर्वक दोनों का स्वागत किया और खातिरदारी की। उसे अपने दामाद के तोर पे स्वीकार किया। धन -धान्य प्रदान किया और अपनी पुत्री के साथ विदा किया।
दूसरी तरफ साहूकार और उसकी पत्नी अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। दोनों ने मिलकर प्रतिज्ञा की थी की यदि पुत्र के मृत्यु का समाचार मिला तो वो अपने प्राण त्याग देंगे।
पर भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की कृपा से विपरीत हुआ। पुत्र अपनी पत्नी के साथ शास्त्रों से धर्मज्ञान की विद्या हासिल कर वापस आ रहा है।
यह समाचार सुनकर पतिपत्नी आनंदित हो गए।
निश्चिंत यह ख़ुशी शाहूकार के लिए पुत्र जन्म से ज्यादा थी। वो अपनी पत्नी कुटुम्बी जनो एवं मित्र गण के साथ अपने नगर के द्वार पर पंहुचा।
मामा भांजा और सुन्दर सुशील कन्या का स्वागत किया। व्यापारी और उसकी पत्नी पुत्रवधु को देख कर फुले नहीं समां रहे थे। व्यापारी मन ही मन भगवान शंकर की कृपा का अहसास कर रहा था।
उसी रात भगवान शिवशंभु व्यापारी के सपने में आये। और कहा है श्रेष्ठी ! में तेरी भक्ति से प्रसन्न हुआ। निर्मल भाव से, मन से एकचित तेरी पूंजन पद्धति प्रभावी है। सोमवार को व्रत और व्रत की कथा सुनने के कारण में प्रसन्न हु। मेने तेरे पुत्र को लंबा आयुष्य प्रदान किया है।
यह सुनकर व्यापारी व्यापारी खुश हो गया। महादेव की कृपा से सपन्न हो गया।
भगवान शंकर के भक्त होने और नियमित व्रत करने से व्यापारी की मनोकामना पूर्ण हुई। ठीक उसी तरह सच्चे मनसे भोलेनाथ का पूंजन करने से, सोमवार का व्रत करने से सभी मनुष्य की मनोकमनाएं पूर्ण होती है।
कथा और पूजन की समाप्ति के बाद भगवान शंकर की आरती की जाती है।
सावन के व्रत में क्या खाना चाहिए ?
भगवान भोले नाथ के भक्त पूर्ण श्रद्धा से सोमवार का व्रत करते है। उन्हें ये प्रश्न रहता है की क्या खाना चाहिए ?
व्रत और उपवास में फलाहार ही उत्तम माना जाता है।
सोमवार के व्रत के दिन फलाहार करना चाहिए। फलाहार का मतलब है फलो का आहार।
सावन सोमवार के व्रत (Sawan Somvar Vrat Katha) के दिन नमक की कोई भी चीज नहीं कहानी चाहिए।
शाम के पूजन के बाद एक समय सात्विक भोजन ले सकते है।
सोमवार के व्रत के नियम
1- सुबह जल्दी उठजाये। स्नान करते समय मन से सभी नदिओं को आमंत्रित करे।
इसके लिए एक श्लोक भी है यदि आप बोल सको तो अच्छा है। श्रद्धा से श्रवण करने से सात नदियों के जल हमारे स्नान के जल में प्रवेश करते है।
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधि कुरु।।
2 – स्वच्छ कपडे पहने और घरमे नित्य पूजा पथ करे।
3 – सूर्य देवता को जल चढ़ाये और तुलसी है तो तुलसी में जल सींचे।
4- शिवजी के लिए पूजा की थाली तैयार करे और नजदीकी शिवालय जाये।
5- शिवजी को जो पसंद है ऐसी सभी पूजा की सामग्री लेने की कोशिश करे।
बिल्वे पत्र शिवजी को खास पसंद है, धतूरे का फूल, पंचामृत ( शहद, दही, घी, दूध, चीनी)
6- धुप और दिप प्रज्जवलित करे। भगवान शंकर की आरती करे।
7- भगवान की सुबह और शाम दो समय पूजा आरती करे।
8 – दिन में फलाहार करे, शाम को एक समय का सात्विक भोजन करे।
9 – विवाहित स्त्री पुरुष ब्रह्मचर्य का पालन करे।
10 – मन कर्म वचन से किसीका बुरा ना करे, किसी की निंदा ना करे।
सोमवार के व्रत से क्या लाभ होता है ?
भक्तिभाव से भगवान शिव की आराधना से अनेक लाभ होते है।
श्रुष्टि के निर्माण करता देव महादेव की सच्चे मन से भक्ति की जाये तो हमारी सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
शिव की आराधना से मनुष्य संसार की सभी वस्तुए पाने में समर्थ बनता है।
हमारे जीवन की सुख समृद्धि एवं धन सम्बन्धी समस्याएं पूर्ण होती है।
शिव पूजन से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। सभी पापो का नाश होता है। भविष्य उज्जवल बनता है।
कुवारी कन्या मनवांछित पति पाने के लिए सोलह सोमवार का व्रत करती है।
स्वस्थ आरोग्य, संतान प्राप्ति एवं शत्रु पे विजय जैसे अभय दान मिलता है।
महामृत्युंजय के जप से मृत्यु का दर जीवन से निकल जाता है।
ॐ नमः शिवाय
सावन सोमवार के व्रत (Sawan Somvar Vrat Katha) करने वाले सभी भक्तो की मनोकामना भगवन भोले नाथ पूर्ण करे । ॐ नहं शिवाय ।