माता वैभव लक्ष्मी का व्रत (vaibhav lakshmi vrat katha) शुक्रवार से शुरू किया जाता है। इस व्रत को महिला और पुरुष कोई भी कर सकता है। सुहागन स्त्रिया अपने परिवार की सुख शांति के लिए समृद्धि के लिए करती है। यह व्रत को 11 या 21 शुक्रवार तक का संकल्प लेके करते है। आखिरी शुक्रवार को उद्यापन होता है।
वैभव लक्ष्मी व्रत – Vaibhav Lakshmi Vrat
वैभव लक्ष्मी व्रत की पूंजन विधि और मंत्र
1 – माता वैभव लक्ष्मी के व्रत में लक्ष्मी माता का पूंजन साम को किया जाता है।
2 – लकड़ी की एक चौकी पर लाल कपडा बिछाये।
3 – लाल कपडे पर माताजी की मूर्ति या तस्वीर के साथ श्री यंत्र रखे।
4 – चौकी पे थोड़े चावल रखकर उसपे तांबा का कलश रखे।
5 – कलश में स्वच्छ पानी भरे और कंकु से तिलक करे।
6 – कलश पर एक कटोरा रखे उसमे कोई सोने का या चांदी का गहना रखे।
7 – माता जी को अक्षत और लाल फूल चढ़ाये।
8 – खीर का प्रसाद बनाकर माताजी को भोग लगाए।
9 – पुरे दिन उपवास करना है। यदि पुरे दिन नहीं कर सकते तो सामको खीर का प्रसाद के बाद भोजन कर सकते है।
10 – व्रत के दिन खट्टा नहीं खाना है।
निचे माता वैभवलक्ष्मी का मंत्र है, उसका कथा के दौरान उच्चारण करना है। यदि ये नहीं कर सकते तो कथा श्रवण में माता लक्ष्मी के नाम का जाप करते रहना है।
वैभव लक्ष्मी का मंत्र
या रक्ताम्बूजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी।।
या रत्ना करमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।
सा माँ पातु मनोरमा भगवती लक्मीश्च पद्मावती।।
यत्राभ्याग वदानमान चरणं प्रक्षालनं भोजनं।
सत्सेवां पितृ देवा अर्चनम विधि सत्यं गवां पालनम।।
धान्यांनामपि सग्रहो न कलहश्रिता तुरूपा प्रियाः।
दृष्टां प्रहा हरी वसामि कमला तस्मिन् ग्रहे निष्फला।।
वैभव लक्ष्मी के व्रत की कथा – vaibhav lakshmi vrat katha
एक शहर था इसमें बहुत सारे लोग रहते थे। शहरी जीवन के अनुशार सबका जीवन व्यस्त था। सभी लोग अपने कामो में व्यस्त रहते थे। पहले की तुलना में लोगो का एक दूसरे के साथ बैठना उठना, समय बिताना बहुत कम हो गया था।
जैसे जैसे आधुनिकता बढ़ती गयी शहर के लोगो से भक्तिभाव कम होता गया। एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव, दया धर्म कम हो गए थे। भजन-कीर्तन, कथाये जैसी आध्यात्मिकता कम होने लगी थी। जरुरत मंद को दान करने या मदद करने के परोपकार वृति भी कम हो गयी थी।
धीरे धीरे संस्कारी जीवन नष्ट होता दिख रहा था। और आसुरी वृति वाला जीवन का वर्चस्व बढ़ रहा था। शहर में गुनखोरी और बुराइया बढ़ने लगी थी।
चोरी डकैती व्यभिचार, शराब, जुआ, और रेस जैसे गुनाह दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे थे। इसके बावजूद शहर में कुछ लोग अभी भी मानवता से जीवन जी रहे थे।
धर्म परायण जीवन जीने वाले लोगो ने शिला का भी परिवार था। शिला और उनके पति उसी शहर का हिस्सा थे। उनका जीवन आध्यात्मिकता के साथ एक अच्छे परिवार की तरह बिता रहे थे।
धर्मज्ञान का समन्वय दोनों पति पत्नी में दिख रहा था।
दोनों संस्कारी और सुशिल थे। भजन-कीर्तन, व्रत कथा में समय व्यतीत करते थे।
दोनों का जीवन देख शहर के लोग सराहना करते थे। दोनों पतिपत्नी दुसरो को इर्षा ही जाये इस तरह प्रेम भाव से जीवन व्यतीत कर रहे थे। उत्तम गृहस्थ जीवन में दोनों सभी के लिए एक उदहारण रूप में थे।
दुःख और सुख मानव जीवन का एक हिस्सा है। समय बदल ते देर नहीं लगती। जीवन में दुःख को सहन करना पड़ता है। और सुख में अपने आप को काबू में रखना पड़ता है।
यहाँ सुख और शांति से जीवन जीने वाले शिला के परिवार में भी परिवर्तन होने लगा। शिला का पति गलत दोस्तों से दोस्ती कर बैठा। दोस्तों की ख़राब सोबत के चलते इसकी असर शिला के पति पर भी होने लगी। संतोष पूर्ण जीवन जीने वाला उसका पति करोड़पति बनने का स्वप्न देखने लगा।
धीरे धीरे चरस गांजा, शराब की लत हो गयी। वो इधर उधर भटकने लगा। अपना काम धंधा छोड़कर भिखारी की तरह गुमने लगा। वो ख़राब दोस्तों के चक्रव्यह में फस गया था। कही बुरी आदतों के बाद जुआ भी खेलने लगा। जुआ में उसने कमाया हुआ धन हार गया।
शिला ये सब देख दुखी हो रही थी।
और सोचती थी की जीवन कहा से कहा चला गया। और आगे कहा तक जायेगा। पर वो धर्म परायण स्त्री थी उसने अपना काम कभी नहीं छोड़ा।
वो हररोज प्रभु भक्ति करती और पूंजन करती थी। उसे परमेश्वर पे विश्वास था की प्रभु की कृपा होगी। और ये दिन भी जल्दी चले जायेंगे।
एक दिन सुबह में प्रतिदिन की तरह पूंजा पाठ किया। भगवान को प्राथना की और बुरे दिन को सहन करने की शक्ति मांगी।
उसी दिन दोपहर को किसीने उनका दरवाजा खटखटाया। उसने बहार जाके देखा तो एक वृद्ध स्त्री दरवाजे पर खड़ी थी। जिसके चेहरे पे तेजस्विता दिख रही थी। देखने से प्रेम और करुणा का सागर भी लग रही थी। चेहरे पे अद्भुत निखार था।
आँखों से अमृत की धारा बह रही थी और प्रेम छलक रहा था।
माँजी का इस तरह का रूप देखते ही शिला मंत्र मुग्ध हो गयी। वो अपार शांति महसूस करने लगी। उसका मन माँजी को देख कर आनंदित और प्रफुल्लित हो गया। उसको लगने लगा की उसके जीवन से सभी दुःख हरने कोई आया है।
शिला माँजी को स्नेह के साथ आदर भाव से घरमे ले आयी। सबकुछ नष्ट हो ने की बजह से बिठाने के लिए आसान भी घरमे नहीं था। शिला ने एक फटी हुई चद्दर लपेटके उसमे बिठाया।
माजी बोले
क्यों शिला मुझे पहचाना की नहीं ? तेरा चेहरा देख लग रहा है तूने मुझे पहचाना नहीं है। तू हर शुक्रवार मंदिर में भजन कीर्तन करने आती है। में भी उसी भजन कीर्तन का हिस्सा हु।
में भी भजन कीर्तन में वहां आती हु। मेने तुम्हे बहोत दिनों से मंदिर नहीं देखा इसीलिए में तुमको मिलने यहाँ तुम्हारे घर चली आयी।
मांजी की प्रेम और स्नेहभरी वाणी सुनकर शिला भावविभोर हो गयी। उसकी आंख में से गंगा जमना की तरह आंसू बहने लगे। कोई मिला है जो उसके दुःख को समज सकता है। उसकी परेशानी को महसूस करता है। इसीलिए ये मांजी के सामने बिलख कर रोने लगी।
मांजी ने कहा बेटा दुःख और सुख तो एक सिक्के की दो बाजु के बराबर है। या फिर धुप और छाव की तरह है। मानव जीवन में सुख और दुःख आता रहता है। धीरज रख सब ठीक हो जायेगा। तू क्यू परेशान है ? तेरी परेशानी मुझे बता।
मांजी के प्रेम और वात्सल्य भरे शब्द सुनकर शिला को सांत्वना मिली। अपने हदय को हलके करने और दुःख दूर करने के उदेश्य से अपनी दास्ताँ मांजी को सुनाई। कैसे सुखी संपन्न परिवार बिखर गया उसकी पूरी कहानी शिला ने सुनाई।
शिला की दर्द से भरी कहानी सुनकर मांजी ने कहा, बेटा कर्म की गति न्यारी है। कर्म किसीको नहीं बक्षता। अपने किये हुए कर्म सबको भुगतने पड़ते है। पर तेरे बुरे दिन बीत गए है। चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है।
‘तुतो माँ लक्ष्मी जी की परम भक्त है।
प्रेम और करुणा का अवतार माँ लक्ष्मी अपने भक्तो को कभी परेशान नहीं देख सकती। हमेशा भक्तो पे प्रेम बरसाने वाली माता लक्ष्मी तेरे भी दुःख जल्दी दूर करेंगे। अवश्य तेरे पहले जैसे सुख के दिन वापस आयेंगे। तू धीरज धर और माता लक्ष्मी जी का व्रत कर। सबकुछ पहले की तरह ठीक हो जायेगा।
यह सुनकर शिला ने कुतूहल पूर्वक मांजी से पुछा, मांजी ये व्रत कैसे करते है? माता लक्ष्मी के व्रत की विधि क्या है? उसका उद्यापन कैसे करते है ? और यह व्रत करने से क्या लाभ होते है ?
शिला के पूछने पर मांजी से व्रत का सारा विधि विधान बताया। माता जी ने कहा बेटा माँ वैभव लक्ष्मी का व्रत बहुत सरल है। इस व्रत को वैभव लक्ष्मी व्रत अथवा वरलक्ष्मी व्रत कहा जाता है।
यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते है। यह व्रत करने से मनुष्य की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। जीवन में सुख समृद्धि एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है। सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है और जीवन आनंदमय हो जाता है
शिला यह सुनकर रोमांचित हो गयी। आनंद की लहर उसके चेहरे पे साफ दिखने लगी। माजी ने बताई हुई विधि विधान से व्रत करने के लिए आंखे बंध करके संकल्प लेने लगी। व्रत का संकल्प करके आंखे खोली तो सामने कोई भी नहीं था। उसके सामने बैठी हुई माताजी अचानक अदृश्य हो गयी थी।
माँ लक्ष्मी की भक्त शिला तुरंत समज गयी। की मेरे दुःख दूर करने के लिए स्वयं माँ लक्ष्मी जी ही मेरे घर पधारी थी। वो बहुत खुश थी, और माता जी का व्रत करने के लिए उतावली हो रही थी।
शिला ने व्रत की शरुआत की
शुक्रवार का दिन आया। जैसे माताजी ने कहा वैसे ही सुबह स्नान करके स्वच्छ कपडे पहन लिए। पुरे विधि विधान के साथ करुणा का सागर माता लक्ष्मी का व्रत किया। धर्म परायण मनुष्य भाव भक्ति से माता का व्रत करता है, माता की आराधना करता है, तो जरूर उसकी मनोकामना पूर्ण होती है।
शिला ने व्रत पूर्ण होने के बाद अपने पति को प्रसाद खिलाया। प्रसाद खाते ही उसमे बदलाव दिखने लगा। उसका स्वाभाव में अचानक फर्क पड़ने लगा। हर रोज पत्नी को परेशान करने वाला पति उस दिन प्रेम से बाते करने लगा। शिला यह देखकर माता लक्ष्मी की कृपा का अहेसास करने लगी थी। मन ही मन वो माता को शुक्रिया कह रही थी।
माता वैभव लक्ष्मी का व्रत शिला ने पूर्ण भक्ति भाव से किया। पुरे 21 शुक्रवार तक व्रत करने के बाद उसका अध्यापन किया। माता जी ने बताई विधि के मुताबिक सात स्त्रियों को ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की सात पुस्तक सबको उपहार में दी। माँ लक्ष्मी के सभी स्वरूपों की प्राथना की।
माता के धनलक्ष्मी स्वरुप को नमन करके मन में कहने लगी है, माता धनलक्ष्मी मेने आपका व्रत करने का संकल्प लिया था। वह व्रत आज पूर्ण कर रही हु।
है जगत जननी मेरे दुःख मेरी विपत्ति दूर करो।
विश्व में सबका कल्याण करो। जो निःसंतान है उसे संतान दो। कुंवारी लड़की को अपनी इच्छा के अनुशार पति देना। सौभाग्य वती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना।
पूर्ण भक्ति भाव से, आपमें तल्लीन रहकर जो यह व्रत करे उस सभी की मनोकामना पूर्ण करना। सबको सुख और सम्पति देना सबकी विपत्ति दूर करना। आपकी महिमा अपरम्पार है। इस तरह की विनंती कर माता धनलक्ष्मी को प्रणाम किया।
वैभव लक्ष्मी व्रत के प्रभाव से शिला का पति एक आदर्श मानव बना। महेनत कर के कमाने लगा। अपने एवं अपने परिवार का ध्यान रखने लगा। पत्नी के गिरवी रखे गहने वापस लाया। घर मे धन की वृद्धि होने लगी। सुख और शांति घरमे छाने लगी।
पति पत्नी का जीवन फिर से लोगो के लिए उदाहरणीय हो गया। ये देख महोल्ले की सभी स्त्रिया माँ वैभवलक्ष्मी का व्रत विधि पूर्वक करने लगी।
जय माँ लक्ष्मी
माता वैभव लक्ष्मी व्रत (vaibhav lakshmi vrat katha) के बाद लक्ष्मी जी की आरती की जाती है। और प्रसाद बाटा जाता है।
माँ वैभव लक्ष्मी की आरती
माँ वैभवलक्ष्मी व्रत की उद्यापन विधि
1 – उद्यापन में जितने शुक्रवार का संकल्प लिया हो उतने शुक्रवार व्रत और माताजी की आराधना करना है। अंतिम शुक्रवार को उद्यापन विधि करके पूर्णा हुती होती है।
2 – अंतिम दिन कथा का श्रवण सुहागन स्त्रियों के साथ करे।
3 – माताजी को सुहाग की सभी सामग्री अर्पण करें।
4 – कथा के श्रवण के बाद माता वैभवलक्ष्मी के व्रत की पुस्तक सबको प्रदान करे।
5 – खीर का प्रसाद बनाये और सबको बाटे।
6 – सभी स्त्रियों को कुमकुम तिलक करे।
7 – सात कुवारी कन्या को भोजन कराये और उन्हें उपहार के रूप में कुछ प्रदान करे।
8 – पूंजन के बाद वैभवलक्ष्मी के धनलक्ष्मी स्वरुप प्रणाम कर प्राथना करे। और कहे की माँ मेरे संकल्प के मुताबिक आपका व्रत पूर्ण किया है। हमारा कल्याण करो और सबकी मनोकामना पूर्ण करो। इस वचन के साथ माता लक्ष्मी को प्रणाम करे।
माता वैभव लक्ष्मी के व्रत से क्या लाभ होता है ?
माता लक्ष्मी करुणा की देवी है। सच्चे मन और श्रद्धासे उनका व्रत करने से मनुष्य की हर मनो कामना पूर्ण होती है।
परीक्षार्थी परीक्षामे सफलता के लिए ये व्रत करता है, तो निश्चित उन्हें सफलता प्राप्त होती है।
परिवार के लोगो के बिच कोई कलह नहीं रहता। सब एक दूसरे के साथ प्रेम से रहते है।
व्यापर में नुकशान हो रहा हो, व्यापर को बढ़ाना हो तो यह व्रत करना चाहिए।
हम कोई शुभ काम करने की कोशिश कर रहे हो और ये नहीं होता है तो यह व्रत बाधा दूर करता है।
वैभव लक्ष्मी व्रत से मनुष्य को सुख और समृद्धि मिलती है।
कोई सरकारी काम काज रुका हो। अदालत का कोई केश हो तो शुक्रवार के व्रत से निकल हो जाता है।
पति पत्नी संतान प्राप्ति के लिए ये व्रत करते है। निःसंतान को संतान प्राप्ति होती है।
माता लक्ष्मी हमारी बुद्धि को स्थिर रखती है। जिसे हमारे गहरा में आने वाली लक्ष्मी शुद्ध होती है।
वैभव लक्ष्मी व्रत में क्या खाया जाता है ?
वैभव लक्ष्मी व्रत में चावल और खीर का भोग लगाया जाता । इसे प्रसाद के रूप में सबको बाटा जाता है, और खुद भी ग्रहण किया जाता है। व्रत का उपासक को एक समय का भोजन ग्रहण करना चाहिए। यदि भोजन में खीर होता है तो अति उत्तम है।
जय महालक्ष्मी
माता लक्ष्मी सबको सद बुद्धि प्रदान करे। और वैभव लक्ष्मी के व्रत (vaibhav lakshmi vrat katha) करने वाले की सभी मनोकामना पूर्ण हो।