एक पति व्रता स्त्री की शक्ति का परिचय इस व्रत कथा में होता है। हिन्दू सनातन धर्म की यह विशेषता है, की यहाँ नारी को नारायणी माना जाता है। नारी को लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है। शक्ति के रूप में पूजा जाता है। Vat Savitri Vrat में एक के सतीत्व के आगे सबको जुकना पड़ता है, ये दिखाई देता है।
वट सावित्री व्रत कथा ( Vat Savitri Vrat ) स्त्री की अगाध शक्ति का परिचय है। इस व्रत को हिन्दू धर्म में मानने वाली विवाहित महिलाये रखती है। और अपने पति की लम्बी उमर की कामना करती है।
हिन्दू धर्म में महिलाये पति को परमेश्वर मानती है। पति के साथ सात जन्मो का नाता समझती है। लग्न ग्रंथि से जुड़ने के बाद अपना सबकुछ पति को न्योछावर कर देती है। अपने पति के लिए स्त्री यमराज से भी लड़ सकती है, ये व्रत उसका उत्तम उदहारण है।
वट सावित्री व्रत कब होता है ?
माता सावित्री के ये व्रत का इंतजार सभी को रहता है। इस व्रत के लिए तैयारियां पहले से ही शुरू हो जाती है। सभी विवाहत महिला को ये सवाल होता है, की कब है वट सावित्री का व्रत ?
हिन्दू धर्म के पंचांग के अनुसार वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास में होता है। ज्येष्ठ मास की अमावश्या के दिन वट सावित्री का व्रत होता है। इअस्कि तारीख हर साल बदलती रहती है। ये व्रत तिथि के अनुशार होता है। यदि हम तारीख जानना चाहते है तो ये तिथि कोनसी तारीख को है, ये कैलेंडर में चेक कर सकते है।
वट सावित्री के व्रत की कथा – Vat Savitri Vrat katha
भद्र देश नामका एक नगर था। इस नगर में एक राजा राज्य था। इस राजा का नाम अश्वपति था। राजा अश्वपति राज्य सुखी और समृद्ध था। राजा निः संतान होने के कारण निराश रहता था।
राजा ने संतान प्राप्ति के हेतु से शास्त्रोक्त विधि के अनुशार यज्ञ किया। यज्ञ में मंत्रोउच्चारण के साथ कही सालो तक आहुति प्रदान की।
पवित्र यज्ञ मंत्रोच्चार से प्रसन्न होकर माता सावित्री ने दर्शन दिया। और कहा राजा तेरे पूंजन विधि और धैर्य से में प्रसन्न हु। तेरे घर एक अति सुन्दर और तेजस्वी कन्या का जन्म होगा।
माता सावित्रीदेवी की कृपा से राजा के घर एक अति सुन्दर कन्या का जन्म हुआ। ये कन्या माता सावित्रीदेवी की कृपा से मिली थी। इसीलिए राजा ने उस कन्या का नाम सावित्री रख दिया।
पुत्री सावित्री गुणवान और तेजस्वी थी। धीरे धीरे वो बड़ी होने लगी, अब वह विवाह के लायक हो गयी थी। पुत्री स्वरुपवान थी इसीलिए अच्छा वर मिलेगा उस आशय से राजा योग्य पुत्र की खोज करने लगा।
समय बीतता जा रहा था। राजा को योग्य वर नहीं मिल रहा था। एक दिन राजा ने अपनी कन्या को बुलाया और कहा बेटी मेरी प्रयत्न के बावजूद में तेरे लिए योग्य वर खोजने में असफल रहा हु। आप स्वयं अपने लिए योग्य वर की तलाश करे।
पिता के यह वचन सुनकर सावित्री राज्य के मंत्रीओ के साथ वर की खोजमे निकल गयी। वह अनेक राज्य और तपोवन में गयी। अनेक ऋषिमुनिओ के आश्रम एवं तीर्थ गयी।
अपनी इच्छा अनुशार वर का चयन कर सावित्री वापस अपने राज्य में आ गयी। वह राज्य में आयी और अपने पिता के पास गयी। उस वक्त अपने पिता के साथ नारद ऋषि भी हाजिर थे। पुत्री सावित्री ने दोनों को प्रणाम किया।
पिता ने पुत्री सावित्री से पूछा है पुत्री तेरी यात्रा कैसी रही। जिस उदेश्य से तूने यात्रा की थी क्या वे पूरा हुआ ?
पुत्री सावित्री ने कहा जी पिताजी, में कही सारे आश्रम, तपोवन एवं राज्य का प्रवास करके आयी हु। और मुझे तपोवन में अपने माता पिता के साथ रहता सत्यवान मेरे लिए योग्य है। मेने मन से उन्हें पति स्वीकार लिया है।
सावित्री की बात सुनकर देवर्षि नारद बोले, राजन ये कन्या की बहुत बड़ी गलती है।
पुत्री सावित्री जिस सत्यवान की बात करती है वो निर्धन है। सत्यवान के पिता द्युमत्सेन एक राजा थे। युद्ध में उन्हें हराकर उनका राज्य शत्रुओ ने छीन लिया है। अब वह वन में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे है।
है राजन आपकी पुत्री ने जिसको पसंद किया है वो सत्यवान गुणवान है। ज्ञानधर्म का ज्ञाता है, धर्मात्मा है और बुद्धिशाली है। शारीरिक रूप से बलवान भी है। पर उसका आयुष्य बहुत कम है। अल्पायु होने के कारण अगले एक वर्ष में उनकी मृत्यु हो जाएगी।
नारद ऋषि की बात सुनकर राजा चिंतित हो गया। अश्वपति घोर चिंता में दुब गया। अपनी पुत्री से कहा है पुत्री तू सत्यवान की जगह किसी और को अपने वर के रूप में चुन ले। जो तुजे जीवन भर सुख और शांति प्रदान कर शके।
पुत्री सावित्री ने कहा पिताजी आपको चिंता करने आवश्यकता नहीं है। सनातन आर्य धर्म की ये संस्कृति रही है की कन्या एक ही बार विवाह करती है। जिसको अपना पति मानती है जीवन भर उसका परमेश्वर के रूप में पूंजन करती है। इसीलिए है पिताजी दूसरा वर देखने की जरुरत नहीं है।
पुत्री सावित्री की हठ के सामने पिता को जुकना पड़ा। राजा अश्वपति पुत्री का कहा मानाने के लिए विवश हो गया। उन्हों ने अपनी पुत्री सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया।
सावित्री विवाह के बाद आपमें ससुराल चली गयी। वहां अपने पति एवं सास-ससुर की सेवा करने लगी। दिन बीतते गए पर एक चिंता उसे हमेशा सताती रहती थी। ऋषिराज नारदजी के अनुशार उसके पति अल्पायु के है। पति के मृत्यु का समय धीरे धीरे नजदीक आ रहा था।
नारदजी के कहे अनुशार तिथि में चार दिन बाकि थे। तो आखरी तीन दिन सावित्री ने व्रत रहकर उपवास चालू कर दिया।
अब वह दिन आ गे था जिस दिन का उसे दर था। सत्यवान प्रतिदिन की तरह लकड़ी काटने जंगल जा रहा था। आज सावित्री भी उसके साथ जंगल जाने के लिए तैयार हो गयी। पति ने मना किया पर सास ससुर की आज्ञा ले कर पति के साथ गयी।
जंगल में सत्यवान पेड़ पर लकड़ी काट रहा था, उसी वक्त उसके सर में तेज दर्द हुआ। वो निचे उतर गया। पत्नी सावित्री सब समज रही थी। पति सत्यवान का ये अंतिम समय था।
दर्द से परेशान और व्याकुल सत्यवान निचे लेट गया। पत्नी सावित्री ने पति का सर अपनी गोद लिया और सहलाने लगी। अपने भरथार की यह हालत से सावित्री रोने लगी। मन ही मन भगवान को प्राथना करने लगी। उसी समय वह एक दृश्य देखती है। एक लाल कपड़ो वाला, सर पे सींग वाला, विकरार रूप वाला व्यक्ति हाथ में गदा ले कर नजदीक आ गया।
उसे देखकर सावित्री में पूंछा महाराज आप कौन है ? आप यहाँ क्यों आये हो ? सामने से जवाब आया है देवी सावित्री में यमराज हु। में विधाता के लेख के अनुशार आपके पति का प्राण लेने आया हु। यह कहकर यमराज सत्यवान का प्राण लेके वापस जाने लगे।
यमराज सत्यवान का प्राण लेके यमलोक जा रहे थे। सावित्री यमराज के पीछे पीछे जा रही थी। सावित्री को अपने पीछे देख यमराज बोले, सावित्री आप कहा जा रही है। सावित्री ने कहा यमराज मेरे पति जहां जायेंगे में भी वहां जाउंगी ये मेरा धर्म है। एक पति व्रत स्त्री अपने पति को अकेला नहीं छोड़ सकती।
यमराज में सावित्री को समजाने की कोशिश की परर सावित्री नहीं मानी। यमराज ने कहा बेटी ये तो विधता के द्वारा निर्मित है। जो आया है उन्हें समय के अनुशार वापस जाना पड़ता है। पर सावित्री नहीं मानी।
एक पतिव्रता स्त्री की निष्ठां और पतिपरायणता देख कर यमराज प्रसन्न हुए। और कहा है देवी तुम महान हो, तुम धन्य हो। में तुम्हे वरदान देना चाहता हु। तुम अपने पति की जगह कोई वरदान मांगो।
सावित्री ने यमराज की यह बात सुनकर वरदान माँगा। की उसके सास-ससुर दृष्टि हिन् है उन्हें दृष्टि प्रदान करे। यमराज ने कहा तथास्तु, अब आप वापस लोट जाओ।
सावित्री वापस नहीं गयी, वे फिर से यमराज के पीछे चलने लगी। यह देख यमराज ने वापस लौटने को कहा। जवाब में सावित्री ने कहा महाराज में अपने कर्त्तव्य का पालन कर रही हु। मेरे पतिदेव ही मेरेप्राण है मुझे आपकी साथ आने में कोई परेशानी नहीं है।
देवी सावित्री की बात सुनकर यमराज ने कहा पुत्री तुम एक और वरदान मांगो। में तुम्हे अपने पति के बदले एक और वरदान देता हु।
दूसरे वरदान में सावित्री ने कहा है ! महाराज मेरे ससुर का राज्य छीन गया है उसे वापस लोटा दो। यमराज ने कहा तथास्तु, अब आप वापस चली जाओ। पर पति को परमेश्वर मानने वाली सावित्री यमराज के पीछे चलने लगी।
यह देख यमराज ने सावित्री को एक और वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने तीसरा वरदान माँगा। है महाराज में पति सत्यवान से 100 सन्तानो की माता बनु। यमराज ने पुत्रवधु का वरदान भी दे दिया।
वरदान देने के बाद यमराज याम यम लोक की तरफ आगे बढे। सावित्री को फिर उनके पीछे देख यमराज ने कहा, देवी अपने जो माँगा मेने दे दिया अब आप वापस लोट जाओ।
सावित्री ने कहा है प्रभु आपने मुझे 100 संतानो की माता बनने का वर दिया है। ये संतान के पिता सत्यव्रत होंगे। जिसका प्राण आप ले जा रहे हो तो यह कैसे संभव होगा।
यह सुनकर यमराज एक पतिव्रता स्त्री के सामने नतमस्तक हो गए। उन्होंने सत्यवान के प्राण को छोड़ा दिया। और पतिपरायण स्त्री सावित्री को आशीर्वाद दिया की आपकी यह बात युगो युगो तक सुनाई जाएगी। एक पति के लिए पत्नी क्या कर सकती है इसका आप उत्तम उदाहरण बनोगी। यह कह कर यमराज अंतर्ध्यान हो गए।
सावित्री अपने पति के मृत शरीर के पास गयी। देखा तो सत्यवान जीवित हो गया था । पतिपत्नी दोनों खुश होकर अपने घर के लिए चले गए।
सावित्री और सत्यवान घर पहोचे और देखा तो माता पिता को दृष्टि मिल गयी थी। पिता से छिना गया राज्य भी वापस मिल गया।
राज्य में सावित्री और सत्यवान अनंत काल तक भाव भक्ति पूर्ण जीवन जीते रहे।
व्रत सावित्री का व्रत स्त्री पतिकी लम्बी आयु के लिए करती है। इस व्रत की शरुआत सास-ससुर का पूंजन करने के बाद ही शरू करे।
सौभाग्य वती स्त्री के लिए ये व्रत उत्तम माना जाता है। ये व्रत वैवाहिक जीवन में सुख और शांति प्रदान करता है। अपने जीवन साथी पर आने वाला कोई भी संकट टल जाता है।
व्रत सावित्री व्रत क्यों करते है ?
शास्त्रोक्त और धार्मिक मान्यता के अनुशार माता सावित्री अपने पति के प्राण यमराज से वापस लायी थी। यहाँ एक स्त्री की शक्ति का दर्शन होता है। एक पतिव्रता स्त्री जो अपने पति को परमेश्वर मानती है उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। ये व्रत से स्त्री अपनी मनोकामना पूर्ण करती है।
- सुहागन स्त्री अपने पति के लम्बी आयुष्य के लिए ये व्रत करती है।
- ये व्रत करने से संतान प्राप्ति एवं पारिवारिक सुख बढ़ता है।
- ये व्रत करने से स्त्रीओ का सौभाग्य अखंड रहता है और पति दीर्घायु होता है।
- इस व्रत से सौभाग्य वती स्त्री की मनोकामनाएं पूर्ण होती hai
व्रत सावित्री व्रत का उल्लेख हमारे शास्त्रों में भी वर्णित है। सकन्ध पुराण, महाभारत जैसे शास्त्रों में इसका वर्णन किया गया है। ये व्रत हमारे पुरे देश के सभी राज्यों की महिलाये रखती है।
वट सावित्री की पूंजा सामग्री ? Vat Savitri Vrat katha poonja Samagry
सावित्री-सत्यवान की मूर्ति
पूंजन सामग्री
सिंदूर
नारियल
सुपारी
मौली
कच्चा धागा
लाल कपडा
धुप, दिप, घी
ऋतुफल
फूल, पान
जल से भरा कलश
भिगोया हुआ चना
बांस का पंखा
चावल
मिठाई या घर में बना हुआ कोई मिष्ठान
दूर्वा घास
सुहाग का सामान
वट सावित्री व्रत पूजा विधि, वट सावित्री व्रत में क्या करते है ?
यदि आप वट सावित्री व्रत करने का सोच रहे है, तो बहुत अच्छा विचार है। इस व्रत में पूजा विधि क्या है ? कैसे करते है ? इसकी सम्पूर्ण जानकारी यहाँ स्टेप बी स्टेप में दी गयी है। आशा है Vat Savitri Vrat katha के पूजन से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो।
- किसी भी धार्मिक विधि पवित्रता बहुत जरुरी है।
- वट सावित्री व्रत में करने के लिए एक दिन पहले हमें मन,वचन, कर्म से पवित्र हो जाना है।
- व्रत के दिन सुबह जल्दी उठे स्नान करके स्वच्छ वस्र धारण करे।
- ये व्रत सुहागन स्त्रियों के लिए है। इसीलिए सुहागन की तरह सोहल सिंगार कर तैयार होना है।
- आपके घर में जो आपसे बड़े है उसका आशीर्वाद लेना है।
- इस व्रत में बरगद के वृक्ष का पूजन किया जाता है। बरगद के पेड़ में त्रिदेव का वास है। इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश बिराजमान है।
- सभी प्रकार की पूंजन सामग्री लेकर बरगद के वृक्ष के पास जाना है।
- सबसे पहले विग्न हर्ता गणेश का पूंजन करना है।
- इसके बाद माता सावित्री और सत्यव्रत का पूंजन करे। वट वृक्ष का पूंजन करे।
- कलश के जल से वट वृक्ष को सींचे।
- इसके बाद कच्चा धागा वट वृक्ष की चारो तरफ लपेटना है।
- धागा लपेटते समय वट वृक्ष की तीन बार परिक्रमा करे। परिक्रम 3, 5 ,7,11 या 108 बार कर सकते है।
- बरगद के पेड़ के पत्तो का गहना बनाके पहने और सावित्री-सत्यवान की कथा का श्रवण करे।
- भीगे चने को एक पात्र में निकाले।
- अपनी सास-ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद ले।
- बांस के पात्र में कपडे एवं फल ब्राह्मण को दान करे।
वट सावित्री का व्रत का महिमा
कहते है की सनातन हिन्दू धर्म में धर्म और ज्ञान का अद्भुत समन्वय है। वट सावित्री व्रत में एक स्त्री धर्म के साथ चले तो क्या नहीं कर सकती ? उसका पूरा ज्ञान दिया गया है। शास्त्रों एवं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सावित्री यमराज से पति के प्राण वापस लायी थी।
पति सत्यवान की कम आयु के कारण मृत्यु हो जाती है। पतिपरायण सावित्री अपने पति के प्राण वापस करने के लिए यमराज को मजबूर कर देती है।
ये व्रत वैवाहिक स्त्रिये करती है। वट सावित्री के व्रत में महिलाये सावित्री-सत्यवान की पूजा करती है। इस व्रत में बरगद के वृक्ष का पूजन किया जाता है। कहा जाता है की वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का वास है। इसकी पूंजा करने से वैवाहिक स्त्रियों की मनोकामना पूर्ण होती है।
व्रत सावित्री के दिन कथा कहने और सुनाने से भी लाभ होता है। स्त्रियों को मनवांछित फल मिलता है। निःसंतान को संतान प्राप्ति का सुख मिलता है। सौभाग्य अखंड रहता है। अपना वैवाहिक जीवन भी आनंद दायक हो जाता है।
भगवान पशुपतिनाथ का व्रत एवं महिमा
व्रत सावित्री में क्या खाना चाहिए।
वट सावित्री व्रत ( Vat Savitri Vrat katha ) स्त्री की शक्ति का परिचय है। व्रत के दिन उपवास किया जाता है। और प्रसाद की थाली में चने होते है। उसे चने का का शाक और पूरी बनके खायी जाती है। कोई भी व्रत और उपवास के दिन हम तन, मन धन से पवित्र रहे ये बहुत जरुरी है।